________________ 353 श्रीमुनिधर्मसूक्तानि वर्षाकालमा पाट अने शेषकालमां ऊनना आसननुं विधान ततो दारुमये वर्षा-समये प्रासुकासने / आस्यते मुनिभिः शेष-समये पुनरौणिके // 20 // . वर्षाकाल वगर पाट-पाटला वापरनारनी चारित्रहीनता वर्षाकालं विना प्राज्ञा, ये पट्टाधुपभुञ्जते / न ते चारित्रिणो ज्ञेया-स्त्यक्ताचारा हि ते स्मृताः // 21 // ____ अशुद्ध आहारीने थता दोष जिनाज्ञाभङ्ग-मिथ्यात्व-प्रमुखा दुःखलक्षदाः। यतीनां प्रत्यपायाः स्यु-रशुद्धाहारभोजिनाम् // 22 // अंतो मासस्स तओ, दगलेवे करेमाणे सबले। अंतो संवच्छरस्स, दश दगलेवे करेमाणे सबले // 23 // सारणा वारणा चोयणा अने पडिचोयणानी समजण पम्हुठे सारणा वुत्ता, अणायारस्स वारणा। चुकाणं चोयणा भुजो, निठुरं पडिचोयाणा // 24 // जैन मुनिओनां त्रण जातनां पात्र ___ निग्गंथो वा निग्गंथी वा, तउ पायाई धारित्तए वा, परिहरित्तए वा, तं जहा-लाउअपाए, दारुपाए, मट्टिआपाए॥ लौकिक मते पात्र राखवानुं विधान अलाबु दारुपात्रं च, मन्मयं विदलं तथा / एतानि यतिपात्राणि, मुनिः स्वायम्भुवोऽब्रवीत् // 25 // समणाणं सउणाणं, भमरकुलाणं च गोउलाणं च / अनियाओ वसहीओ, सारइआणं च मेहाणं // 26 // 23