________________ 352 सुभाषितसूक्तरत्नमाला पाट वापरवा माटे लक्ष्मीधरशेठनी पृच्छा अने आचार्य महाराजनो उत्तर अथ लक्ष्मीधरोऽपृच्छ-द्देशनान्ते गुरून प्रति / पूज्यपादा भवादृक्षां, न पट्टे कथमासते // 13 // तत्पृष्टा गुरवः प्राहुः, सर्वज्ञोक्तानुसारिभिः। न प्रावृषं विना काष्ट-मयमासनमादृतम् // 14 // ऋतुवद्धकाले पाट वापरनार साधु ओसन्नो कहेवाय ; अस्माभिरप्यतो भद्र !, न पट्टे स्थीयतेऽधुना। यः पट्टे सर्वदैवास्ते, सोऽवसन्नः प्रकीर्तितः // 15 // ओसन्नाना भेद ओसन्नो वि य दुविहो, सम्वे देसे ये तत्थ सव्वंमि / उउबद्धपीठफलगो, ठविअगभोई अ नायव्यो // 16 // ___ आसन-पाट-पाटला क्यारे वपराय ? परं दारुमयं जन्तु-दयायै शयनासनम् / वर्षास्वेव मुमुक्षुणा-मुपादिक्षन् जिनेश्वराः // 17 // अष्टासु परिशिष्टेषु, मासेषु पुनरौणिकम् / अमूढलक्षाः सर्वज्ञा, भाषन्ते हि हितावहम् // 18 // मुनिओने जमीन उपर न बेसाय केवले भूतले सूक्ष्म-नानाजन्तुकुलाकुले / नानुजानन्ति सर्वज्ञा, मुनिनामुपवेशनम् // 19 //