________________ 344 सुभाषितसूक्तरत्नमाला श्रेयांसश्च सुदर्शनश्च भगवानाधः स चक्री यथा, धर्म कर्मणि कामदेववदहो चेतश्चिरं स्थापय // 4 // .. . सामायिकना पांच महागुणो उदासीणया-मज्झत्थ-संकिलेसविसृद्धिओ। अणाउलत्तं असंगतं, एए पंच गुणा इह // 5 // उदासीनता जेहिं तेहिं जह तह, भोयण-सयणाइएहि चित्तस्स / जो संतोसो जायति, सा हु उदासीणया वुत्ता // 6 // मध्यस्थता सामाइय पढमंगं, एसा य विमृद्धिकारणत्तेण / भणिया जिणेहिं संपइ, भन्नइ मज्झत्थवित्ती उ॥७॥ एस सयणो परो वा, इयबुद्धी पयइतुच्छचित्ताणं / पयइए विउलचित्ताण पुण, इमं जयमवि कुटुंबं // 8 // जम्हा अणाइनिहणे, संसारमहासरे सरंताणं / बहुभवसयअज्जियकम्म-रासिवसगाणसत्ताणं // 9 // अन्नोन्नमणेगविहो, कस्सेह न केण को न संबंधो। संजाओ इय चिंता, जा सा मज्झत्थवित्ती उ // 10 // संक्लेश विशुद्धि अह संकिलेसविसुद्धी, भन्नइ जेहिं सह ताणं / अन्नाणं च दुन्नय-दसणेवि जमणक्खपरिहरणं // 11 //