________________ 342 सुभाषितसूक्तरत्नमाला धन्यास्ते पुण्यभाजस्ते, ये रामां वीक्ष्य चक्षुषा / धाराहतोक्षवद् यान्ति, वीक्षमाणाः क्षितेस्तलम् // 13 // यस्य वेदलक्षणानां चारित्रावरणीयानां क्षयोपशम, तस्य मैथुनविरतिलक्षणं केवलब्रह्मचर्यवासितत्वं, नान्यस्य // 14 // सव्वं विलविरं गीअं, सव्वनर्से विडंबिअम्।। सव्वे आहरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा // 15 / / सिंहलसिंहकुलारनी चार राणीओन शीलदाढर्य नो शृङ्गारमयी नो कौतुकमयी नो हास्यकलीमयी, नो संगीतमयी नो मण्डनमयी नो कामलीलामयी। नो संग्राममयी नो विस्मयमयी नो काव्यकेलीमयी, ताः संभाषयितुं कोऽभवदलं स्थैर्य ह्यमूषामहो // 16 // माताना व्यभिचारथी संतति पण व्यभिचारी बने जं छन्नं आयरियं, तइया, जणणीइ जुव्वणे समये / तं पयडिज्जइ इण्डि, सुएहिं सीलं चयंतेहिं // 17 // दुःशीला स्त्रीनी दुर्दशा स्त्री स्यात्तिर्यच दुःशीला, खर्युष्ट्री तुरगी मृगी। शूकर्यजापि वा भार-वाहनायुप्रदुःखभाग् // 18 // कथञ्चिन्नृभवेऽप्याप्ते, बन्ध्या निन्दुर्गरांगता / बालरण्डा कुरण्डा वा, दुर्गन्धा दुर्भगाथवा // 19 / / कुरूपा-कुटुवाग्योनि-रोगा कुष्ठादिरोगिणी। हीनाङ्गी निष्कलाऽवीरा दुष्कुला-ऽभिभयास्पदम् // 20 //