________________ ___335 सुपात्रदानसूक्तानि 6 सुपात्रदानसूक्तानि जो मागेलं मळतुं होय तो आटलं मळजो रिसहेसरसम्मं पत्तं, निरवज्जं इक्खुरससमं दाणं। सेयंससमो भावो, हविज्ज जइ मग्गियं हुज्जा // 1 // श्री जिनेश्वर देवने पेलुं पारणु करावनार तेज भवमां अथवा त्रीजा भवे मोक्षमां जाय तस्मिन्नेव तृतीये वा, भवे सिद्धिर्भवेन्नृणाम् / अन्नदानानुभावेन, जिनेन्द्रादिमपारणे // 2 // करण करावण अने अनुमोदननु सर फल अप्पहियमायरंतो, अणुमोयंतो य सुग्गई लहइ। रहकारदाण अणुमो-यगो मिगो जह य बलदेवो // 3 // रामो तवप्पभावा, सुपत्तदाणाउ झत्ति रहकारो। अणुमोअणाइ हरिणो, संपत्ता बंभलोगम्मि // 4 // भगवानने रेवतीश्राविकाए. वहोरावेलो बीजोरा पाक भगवानाह भो भद्र !, रेवत्या बज मन्दिरम् / तत्र कुष्माण्डपाकोऽस्ति, महातापापनोदकृत् // 5 // कल्प्याकल्प्यविधि सर्व, जानत्यापि मदुक्तितः। धर्मरागेण रेवत्या, मत्कृते विहितोऽधुना // 6 // अनेकद्रव्यसंस्कारा-मोदिकुष्माण्डपाककः / सिंहर्षे ! न त्वयाऽऽनेयो, दीयमानोऽप्यादरात् // 7 //