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________________ 336 सुभाषितसूक्करत्नमाला इतरो वीजपूरस्य, पाकचात्मकृते कृतः। स शुद्धत्वात् त्वया ग्राह्य-स्तनुतापः शमिष्यति // 8 // रेवतीश्राविकाए वीरप्रभुने वहोरावेल पाकथी तीर्थकर नाम बांध्यु श्रूयते रेवती नाम, श्रमणोपासिकाग्रणी / गोशालक विनिर्मुक्त-तेजोलेश्यातिसारिणः॥९॥ श्रीमद्वीरस्य कौष्माण्ड-पाकदानप्रभावतः / जिनः सप्तदशो भावि-समये भविता ध्रुवम् // 10 // (युग्मम्) न वीतरागपरोऽस्ति देवो, न ब्रह्मचर्यादपरं चरित्रम् / नाऽभीतिदानात् परमस्ति दानं, चारित्रिणो नापरमस्ति पात्रम्।। सर्वथी श्रेष्ठ सुपात्रदान वसुधाभरणं पुरुषः, पुरुषाभरणं प्रधानतरा लक्ष्मीः / लक्ष्याभरणं दानं, दानाभरणं सुपात्रश्च // 12 // सात क्षेत्रोज सुपात्र / भवनं जिनराजानां, प्रतिमा पुस्तकस्तथा / सङ्घश्चतुर्विधश्चेति, पात्रं सप्तविधं विदुः॥१३॥ जिनभवन-बिब-पुत्थय-संघसरूवाइं सत्तखित्ताई। जिण्णोद्धारो पोसह-साला साहारणं चेव // 14 // सुपात्रने आपवा योग्य वस्तुओ वसही-सयणासण-भत्त-पाण-भेसज्ज-वत्थ-पत्ताई॥
SR No.004381
Book TitleSubhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherChimanlal Nathalal Gandhi
Publication Year1972
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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