________________ 322 सुभाषितसूक्तरत्नमाला ___ श्रीशान्तिजिने गर्भस्थेऽचिराराज्ञीस्नानवारिच्छटाभिर्मरकोपद्रवशान्तिर्जाता। सांप्रतकालेऽपि विधिनाऽष्टोत्तरशतस्नात्रेण भूतप्रेतशाकिनीग्रन्थिविकाराः क्षयं यान्ति // तीर्थंकरोतुं अश्वर्य रयरोयसेयरहिओ, देहो धवलाई मंसरुहिराई। आहारा नीहारा, अदिस्सा सुरहिणो सासा // 52 // देवा दैवीं नरा नारी, शबराश्चापि शाबरीम् / तिर्यञ्चोऽपि हि तैरवीं, मेनिरे भगवद्गिरम् // 53 // सोउं गाउण गुणे, जिणाण जायाए सुद्धबुद्धिए / किच्चमिणमणुयाणं, जम्मफलं. एत्तियं चेव (चेह) // 54 // गुणपगरिसो जिणा खलु, तेसि बिंबस्स दसणं पि सुहं / कारावणेण तस्स उ, अणुग्गहो अत्तणो परमो // 55 // मोक्स्वपहसामियाणं, मोक्खत्थं उज्जएण कुसलेणं / तग्गुणबहुमाणादिसु, जइयव्वं सबजत्तेणं // 56 // तग्गुणबहुमाणाओ, तह सुहभावेण बझंती णियमा / कम्मं सुहाणुबन्धं, तस्सुदया सम्वसिद्धित्ति // 5 // जीवाण बोहिलाहो, सम्मदिट्ठीण होइ पिअकरणं / आणा जिणंदभत्ती, तित्थस्स पभावणा चेव // 58 // इंदियविसयकसाये परिसहे वेयणा उक्सग्गे। एए अरिणो हता, अरिहंता तेण बुच्चंति // 59 //