________________ श्री वीतरागस्तुतिः 325 केईन्तस्ते वीतरागाः, सर्वज्ञाः शक्रपूजिताः। पर्मदेशनया विश्व-विश्वस्योत्तारकाश्च ये // 42 // सिद्धमरुयमणिन्दिय-मक्खयमणवज्जमच्चुयं वीरं / पणमामि सयलतिहुयण-मत्थयचूडामणिं सिरसा // 43 // समवसरणमां चंदनविधि अरिहंते वंदिता, चोद्दसपुची तहेव दसपुची / एक्कारसंगसुत्तत्थ-धारए सव्वसाहू य // 44 // देवाधिदेवाय जग-तायिने परमात्मने / श्रीमते शान्तिनाथाय, षोडशायाहते नमः // 45 // . श्रीशान्तिनाथभगवन् ! भवाम्भोनिधितारण ! / सर्वार्थसिद्धमन्त्राय, त्वन्नाम्नेऽपि नमो नमः // 46 // . ये तवाष्टविधां पूजां, कुर्वन्ति परमेश्वरः। अष्टापि सिद्धयस्तेषां, करस्था अणिमादयः॥४७॥ धन्यान्यक्षीणि यान्ति त्वां, पश्यन्ति प्रतिवासरम् / तेभ्योऽपि धन्यं हृदयं, तद् दृष्टो येन धार्यसे // 48 // देव ! त्वत्पादसंस्पर्शा-दपि स्यान्निर्मलो जनः। अयोऽपि हेमीभवति, स्पर्शवेधिरसान्न किम् ? // 49 // त्वत्पादाब्जप्रणामेन, नित्यं भूलुण्ठनै: प्रभो ! / श्रारतिलकीभूया-मम भाले कीरणावलिः // 50 // भूयो भूयः प्रार्थये त्वा-मिदमेव जगत्प्रभो!। भगवन् ! भूयसी भूयात, त्वयि भक्तिर्भवे भवे // 51 // . 21