________________ 304 सुभाषितसूक्तरत्नमाला मणिल्ठतु पादाग्रे, काचः शिरसि धार्यताम् / परीक्षककरप्राप्तः, काचः काचो मणिर्मणिः // 2 // . क्षणादसारं सारं वा, वस्तु सूक्ष्मं परीक्षते / निश्चिनोति मरुत्तर्ण, तुलोच्चयशिलोच्चयौ // 3 // कोनी परीक्षा कयारे ? विणये सिस्सपरिक्खा, सुहडपरिक्खा य होइ संगामे / वसणे मित्तपरिक्खा, दाणपरिक्खा य दुब्भिक्खे // 4 // 137 प्रभावकान्तर्गतबप्पभट्टीसूरिवर समस्यासूक्तानि यामः स्वस्ति तवास्तु रोहणगिरे ! मत्तः स्थिति प्रच्युता, वर्तिष्यन्त इमेऽधुना कथमिति स्वप्नेऽपि मैवं कृथाः / श्रीमन्तो मणयो वयं यदि भवल्लब्धप्रतिष्ठास्तदा, के श्रृङ्गारपरायणाः क्षितिभुजो मौलौ करिष्यन्ति नः // 1 // विझेण विणा वि गया नरिन्दभवणेसु हुँति गारविया / विज्झो न होइ एगओ, गएहिं बहुहिं वि गए // 2 // माणसविणा सुहाई, जह य न लभंति रायहंसेहिं / तह तस्स वि तेहिं विणा, तीरुच्छंगा न सोहन्ति // 3 // परिसेसियहंसउलं, पि माणसं न संदेहो। अन्नत्य वि जत्थ गया, हंसा वि बगा न भणन्ति // 4 //