________________ 290 सुभाषितसूक्तरत्नमाला राया आइच्चजसे, महाजसे अइबले य बलभद्दे / बलविरिय कित्तिविरिय, जलविरिय दंडविरिए य // 3 // एएहिं अद्धभरह, सयलं भुत्तं सिरेण धरिओ य / जिगसंतिओ य मउडो, सेसेहिं न चाइओ वोढुं // 4 // [इति ऋषिमण्डलप्रकरणे] 121 दार्शनिकानां प्रमाणमन्तव्यसूक्तम् चार्वाकोऽध्यक्षमेकं सुगतकण भुजौ सानुमान सशाब्द, तद्वैतं पारमर्पः सहितमुपमया तत्त्रयं चाक्षपादः / अर्थापत्त्या प्रभाकृद वदति तदखिलं मन्यते भट्ट एतत, साभावं द्वे प्रमाणे जिनपतिसमये स्पष्टतोऽस्पष्टतश्च // 1 // 122 गीतार्थस्थानसूक्तानि त्यक्तबाह्येतरग्रन्थाः, निःस्पृहा भवचारके / संतुष्टा ध्यानयोगेन, प्रशमामृतपायिनः // 1 // गीयं भण्णइ मुत्तं, अत्थो तस्सेव होइ वक्खाणं / उभएण य संजुत्तो, सो गीयत्थो मुणेयव्यो // 2 // संसारदुक्खमहणो, विवोहणो भवियपुंडरीयाणं / धम्मो जिणपण्णत्तो, पकप्पजइणा कहेयन्यो // 3 // अन्नाणी वक्खाणं, करेइ जो तस्स होइ पावफलं / नाणी वि जो न भासइ, सो लहइ नाणविग्धं तु // 4 //