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________________ प्रेमात्रेमसूक्ते 289 वायससाणखराई निवारिया वि हु हवन्ति असुइरई। हंसकरिसीहपमुहा, न कयावि पणुल्लिआवि पुणो // 2 // धर्मरागो दुराधानः, पापरागस्तु नाङ्गिनि / सुरज्या हि यथा नीली, मञ्जिष्ठा न तथांक्षुके // 3 // जातापत्या पति द्वेष्टि, कृतदारस्तु मातरम् / / कृतार्थः स्वामिनं द्वेष्टि, जितरोगश्चिकित्सकम् // 4 // पूर्व भवना अभ्यासथी प्राप्त थती वस्तुओ रागदोसकसायाऽऽहारभयरूनमेहुन्नं। . पुव्वभवब्भासाओ लब्भइ असुअं अदिटुंपि // 5 // 119 प्रेमाप्रेमसूक्ते योजनानां सहस्राणि, विना प्रेमपदान्तरम् / अनुरागवतां पुंसां, लङ्काऽपि स्याद्गृहाङ्गणम् // 1 // दरस्थोऽप्यब्जिनीनाथो, विकासयति पद्मिनीम् / एकस्थानस्थितमपि, कर्ण पश्यति नेक्षणम् // 2 // 120 ऋषभस्वामिवंशमहिम्नः सूक्तानि भरतादनुसन्ताने, सर्वे भरतवंशजाः / अजितस्वामिनं याव-दनुत्तरशिवालयाः // 1 // सर्वेऽपि संघपतयः, सर्वेऽहश्चैत्यकारकाः। तीर्थोद्धारकराः सर्वे, सर्वेऽखण्डप्रतापिनः // 2 //
SR No.004381
Book TitleSubhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherChimanlal Nathalal Gandhi
Publication Year1972
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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