________________ 282 सुभाषितसूक्तरत्नमाला विश्वावसोस्तु बृहती, तुम्बरोस्तु कलावती। महती नारदस्य स्यात , सरस्वत्यास्तु कच्छपी // 12 // अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम् / अस्तोभमनवद्यं च, सूत्रं सूत्रविदो विदुः॥१३॥ संहितैकपदे नित्या, नित्या धातूपसर्गयोः। नित्या समासे वाक्ये तु, सा विवक्षामपेक्षते // 14 // संकप्पो संरम्भो परितावकरो भवे समारम्भो / आरम्भो उद्दवओ सव्वनयाणं विसुद्धाणं // 15 // शक्रस्य चक्रिणी राज्ञः, स्थानेशस्य गुरोरपि। पञ्चधाऽवग्रहो भावात् पश्चानामपि पुण्यकृत् // 16 / / पत्तनं शकटैगम्यं, घोटकैनौंभिरेव च / नौभिरेव तु यद्गम्यं पट्टनं तत्प्रचक्षते // 17 // आस्व दासौ मृगौ हंसौ, मातङ्गावमरौ तथा / एषा नो षष्ठिका जातिः, अन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः // 18 // रत्नैः सुवर्णैर्बीजेर्वा, रचिता जपमालिका / सर्वजापेषु सर्वाणि, वाञ्छितानि प्रयच्छतु // 19 // करकंडू कलिङ्गेसु, पंचालेसु अ दुम्मुहो। नमीराया विदेहेसु, गंधारेसु अ नग्गई // 20 // ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, रूपस्य यशसः श्रियः। धर्मस्याऽथ प्रयत्नस्य, षण्णां भग इतीगना // 21 //