________________ उपदेशसप्ततिः 249 सम्मत्तमूलाणि अणुव्वयाणि, अहं धरिस्सामि सुहावहाणि / तओ पुणो पंचमहब्बयाणं, भरं बहिस्सामि सुदुबहाणं // 17 // एवं कुणंताण मणोरहाणि, धम्मस्स निवाणपहे रहाणि / पुन्नज्जणं होइ सुसावयाणं, साहूण वा तत्तविसारयाणं / / 18 // हवंति जे मुत्तविरुद्धभासगा, न ते वरं सुटूठु वि कटकारगा। सच्छंदचारी समए परुविया, तदंसणिच्छा वि अईव पाविया // अक्कमित्ता जिणरायआणं, तवंति तिव्वं तवमप्पमाणं / पहंति नाणं तह दिति दाणं, सव्वं पि तेसिं कयमप्पमाणं // 20 // जिणाण जे आपरया सया वि, न लग्गई पावमई कया वि / तेसि तवेणंपि विणा विसुद्धी, कम्मक्खएणं च हविज्ज सिद्धी।। बहुस्सुयाणं सरगं गुरूगं, आगम्म निच्चं गुणसागराणं / पुच्छिज्ज अत्यं तह मुक्खमग्गं, धम्मं वियाणित्ता चरिज्ज जुग्ग।। तुम अगायत्पनिलेकणेणं, मा जीव ! भदं मुण निच्छएणं / संसारमाडिसि पोरदुखं, कया वि पावेसि न मोक्खमुक्ख।। कुमग्गसंसग्गविलग्गयुद्धी, जो बुज्झई मुद्धमई न धिद्धी / तस्सेव एमो परमो अलाहो, अंगीकओ जेण जणप्पवाहो // 24 // छज्जीवकाए परिरक्खिऊगं, सम्मं च मिच्छं सुपरिक्खिऊगं / सिद्धंतप्रत्यं पुण सिक्खिऊगं, मुही जइ होइ जयम्मि नूगं // 25 // इमे चइज्जति जया कसाया, तया गया चित्तगया विसाया। पसंतभाव खु लहिज्ज चित्तं, तत्तो भवे धम्मपहे थिरत्तं // 26 //