________________ 208 सुभाषितसूक्तरत्नमाला हते भीष्मे मृते द्रोणे, कर्णे चान्तमुपागते / आशा बलवती राजन् !, शल्यो जेष्यति पाण्डवान् // 10 // सुवण्णरुप्पस्स य पव्वया भवे, सिया हु कैलाससभा असंखिया। नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणंतिया। दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हो जस्स न होइ तण्हा। तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाई॥ ___ 79 सन्तोषसूक्तानि सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः, स्वदारे भोजने धने / त्रिषु नैव च कर्तव्यो, दाने चाध्ययने व्रते // 1 // निरीहस्य निधानानि, प्रकाशयति काश्यपी। बालकस्य निजाङ्गानि, न गोपयति कामिनी // 2 // सर्व गुणोमां संतोष गुण प्रधान छे यथा नृणां चक्रवर्ती, मुराणां पाकशासनः / तथा गुणानां सर्वेषां, संतोषः प्रवरो गुणः // 3 // संतोषयुक्तस्य यते-रसंतुष्टस्य चक्रिणः। . तुलया संमितो मन्ये, प्रकर्षः सुखदुःखयोः // 4 // संतोषायत्तचित्तानां, यत्तु संयमिनां सुखम् / लोभलम्पटयोस्तन्न, मानवेन्द्र-सुरेन्द्रयोः // 5 // संतोसतप्परस्स, तवे रयस्स सव्वत्थनिरभिलासस्स / चिट्ठउ ता इह धम्मो, दूरीकयदुग्गईमग्गो // 6 //