________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला नियपाणच्चाएण वि, परपाणा रक्खिया जहा इहयं / धम्मरुइसाहुणा तह, रक्खेयव्या सया जीवा // 23 // तह जो मरणन्ते वि हु, मणसा वि न खंडए नियं नियम / सो सग्गई पावइ, जह पत्तं धम्मरुइमुणिणा // 24 // . 70 अहिंसासमर्थक सूक्तानि श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावधार्यताम् / आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् // 1 // न सा दीक्षा न सा भिक्षा, न तज्ज्ञानं न तत्तपः। न तदानं न तद् ध्यानं, दया यत्र न विद्यते // 2 // सर्ववेदा न तत्कुयुः, सर्वे यज्ञाश्च भारत ! / सर्वतीर्थाभिषेकाच, यत्कुर्यात्प्राणिनां दया // 3 // दया महानदीतीरे, सर्व धर्मास्तृणाङ्कराः / तस्यां शोषमुपेतायां, कियन् नन्दन्ति ते चिरम् // 4 // थूला मुहुमा जीवा, संकप्पारंभओ भवे दुविहा / सावराहनिरवराहा, साविक्खा चेव निरविक्खा // 5 // नेव दारं पिहावेइ, भुंजमाणो सुसावओ। अणुकम्पा जिणंदेहि, सड्ढाणां न निवारिया // 6 // लक्ष्म्या गार्हस्थ्यमक्ष्णा मुखममृतरुचिः श्यामयाऽम्भोरुहाक्षी, भ; न्यायेन राज्यं वितरणकलया श्री पो विक्रमेण /