________________ 181 प्रमाददुष्टतासूक्तानि रूवे वि [अ] अरोगत्तं, नीरोगे चिरजीवियं / हियाहियाइविनाणं, जीविए खलु दुल्लहं // 22 // सद्धम्मसवणं तम्मि सवणे धारणं तहा। धारणे सदहाणं च, सद्दहाणे वि संजमो // 23 // एवं रे जीव ! दुल्हं, बारसंगाण संपयं / संपयं पाविऊणेह, पमाओ नेव जुज्जए // 24 // पमाओ य जिगिंदेहि, अट्टहा परिवन्निओ। अन्नाणं संसओ चेव, मिच्छानाणं तहेव य // 25 // रागदोसो मईन्भंसो, धम्ममि य अगायरो। जोगाणं दुप्पणिहाणं, अट्टहा वज्जियव्यओ // 26 // वरं महाविसं भुत्तं, वरं अग्गिपवेसणं, वरं सत्तहिं संवासो, वरं सप्पेहि किलियं // 27 // मा धम्मंमि पमाओ, जमेगमच्चू विसाइणो / पमाएणं अणंताणि, जम्माणि मरणाणि य / / 28 // सग्गापवग्गमग्गंमि, लग्गा वि जिणसासणे। पाडिया हा ! पमाएणं, संसारे सेणियाझ्या // 29 // सोढाई तिक्खदुक्खाई, सारीरमाणसाणि य / रे! जीव ! नरए घोरे, पमाएणं अणंतसो // 30 // दुक्खाई णेगलक्खाइं, छुहातण्हाइयाणि य / पत्ताई तिरियत्ते वि, पमाएणं अणंतसो // 31 //