________________ कोधादिकषायाणां दुष्टतासूक्तानि 171. 59 कोधांदिकषायाणां दुष्टतासूक्तानि / कोहो पीइं विणासेइ, माणो विणयनासगो / माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सबविणासणो // 1 // कट्ठकिरियाहिं देहं, दमन्ति किं ते जडा निरवराहं / मूलं सव्वदुहाणं, जेहिं कसाया न निग्गहिया // 2 // सव्वेमु वि तवेसु(य), कसायनिग्गहसमं तवो नत्थि / जं तेण नागदत्तो, सिद्धो बहुसो वि मुंजतो // 3 // तत्तमिणं सारमिणं, दुवालसंगीइ एस भावत्थो। जं भवभमणसहाया, इमे कसाया चइज्जति // 4 // मुक्खमग्गपवण्णाणं, सिणेहो वज्जसिंखला। वीरे जीवंतए जाओ, गोयमो जं न केवली // 5 // सामन्नमणुचरन्तरस, कसाया जस्स उक्कडा हुँति / मन्नामि उच्छुपुप्फ ब्य, निप्फलं तस्स सामन्नं // 6 // सव्वे वि य अइयारा, संजलणाणं तु उदयो हुंति / मूलछेज्जं पुण होइ, बारसण्हं कसायाणं / / 7 / / पंचमहव्वयमइयं, अट्ठारससीलंगसहस्सकलियं वि / चरित्तं घाएन्ति त्ति, [कसाया] सव्वघाइणो // 8 // . जातिलाभकुलैश्चर्य-बलरूपतपःश्रुतैः। कुर्वन् मदं पुनस्तानि, हीनानि लभते जनः // 9 //