________________ 166 सुभाषितसूक्तरत्नमाला वेयावच्चं निययं, करेह उत्तमगुणे धरिन्ताणं / .. सव्वं किल पडिवाई, वेयावच्चं अपडिवाई // 2 // पडिभग्गस्स मयस्स व, नासइ चरणं सुर्य अगुणणाए / न हु वेयावच्चचिरं, सुहोदयं नासए कम्मं // 3 // लाभेण जोजयंतो, जइणो लाभंतराइयं हणइ। कुणमाणो य समाहिं, सव्वसमाहिं लहइ साहू // 4 // भरहो बाहुबली वि य, दसारकुलनंदणो य वसुदेवो / वेयावच्चाहरणा, तम्हा पडितप्पह जईणं // 5 // होज्ज न व होज्ज लंभो, फासुगआहारउवहिमाईणं / लंभो य निज्जराए, नियमेण अओ उ कायव्यं // 6 // वेयावच्चे अब्भु-ट्ठियस्स सद्धाए काउकामस्स / . लाभो चेव तवस्सिस्स, होइ अदीणमणस्स नियमा // 7 // एमेव पूइयंमि वि, एक्कमि वि पूइया जइगुणा उ। थोवं बहूनिवेसं, इइ नच्चा पूयए मइमं // 8 // तम्हा जइ एस गुणो, एक्कंमि वि पूइयमि ते सव्वे / भत्तं वा पाणं वा, सव्वपयत्तेण दायव्वं // 9 // भक्तिनी महत्ता आयरियअणुकंपाए, गच्छो अणुकंपिओ महाभागो। गच्छाणुकम्पाए, अवोच्छित्ति कया तित्थे // 10 //