________________ 164 सुभाषितसूक्तरत्नमाला अवसरे करेल कार्यनी महत्ता जं अवसरे न हू दिन्नं, दाणं विणओ सुभासियं वयणं / पच्छा गयकालेण, अवसररहियेण किं तेण // 18 // बधाने जमाडया पछी जमवू पितुर्मातुः शिशूनां च, गर्भिणीवृद्धरोगिणाम् / प्रथमं भोजनं दत्त्वा, स्वयं भोक्तव्यमुत्तमैः // 19 // ___उत्तम मनुष्यो उचितनो त्याग करता नथी मुंचंति न मज्जायं, जलनिहिणो नाचला वि हु चलंति / न कयावि उत्तमनरा, उचिआचरणं विलंघन्ति // 20 // 56 विनयसूक्तानि अकलङ्ककुलपसूया, जगसिरमणिणा जिणेण दिण्णवया / एयारिसं तमज्जे !, रयणिविहारं कह पवन्ना // 1 // तो सा पायनिवडिआ, पवत्तिणीए खमाविउं लग्गा / एसो ममावराहो, मरिसिज्जउ न पुण काहामि // 2 // एसा महाणुभावा, पवत्तिणी सयललोयनमणिज्जा। कह मज्झ पमाएणं; एवमसंतोसमाणिया // 3 // (मिगावई-चंदणा) विणया नाणं नाणाओ, देसणं दसणाओ चरणं च / चरणाहिंतो मोक्खो, मोक्खे सुक्खं निरांबाहं // 4 //