________________ कर्मबलवत्तरताख्यापकसूक्तानि पम्हाए देवलोयं, मुक्काए जाइ सासयं ठाणं / इय लेसाण वियारो, नायव्वो भव्वजीवेहिं // 8 // यादृशी जायते लेश्या, समयेऽन्त्ये शरीरिणः। तादृश्येव भवेल्लेश्या, प्रायस्तस्याऽन्यजन्मनि // 9 // तिरिनर आगामिभव-लेसाए अइगए मुरा निरया / पुन्वभवलेससेसे, अंतमुहुत्ते मरणमिन्ति // 10 // समत्तसुअं सव्वासु, लहइ सुद्धासु तिसु व चारित्तं / पुव्वपडिवन्नओ पुण, अन्नयरीए वि लेसाए // 11 // शुक्ल लेश्यानी स्थिति मुहुत्तद्धे (अन्तर्मुहूर्त) तु नहन्ना, उक्कोसा होइ पुव्वकोडीओ। नवहि वरिसेहिं ऊणा, नायव्वा मुक्कलेसाए // 12 // 48 कर्मबलवत्तरताख्यापकसूक्तानि गोपो बब्बूलशूलाग्रे, प्रोतयूकोत्थपातकात् / अष्टोत्तरशतं वारान् , शूलिकारोपणान् मृतः॥१॥ नीचैर्गोत्रावतारश्वरमजिनपतेर्मल्लिनाथेऽबलात्वमान्ध्यं श्रीब्रह्मदत्ते भरतनृपजयः सर्वनाशश्च कृष्णे / निर्वाणं नारदेऽपि प्रशमपरिणतिः स्याच्चिलातीसुतेऽपि, त्रैलोक्याश्चयेहेतुजेयति विजयिनी कमेनिर्माणशक्तिः // 2 // मुतारा विक्रीता स्वजनविरहः पुत्रमरणं, विनीतायास्त्यागो रिपुबहुलदेशे च गमनम् /