________________ 144 सुभाषितसूतरत्नमाला साधुना 27 गुणो छन्वयकायरक्खा, पंचिंदियलोहनिग्गहो खंति / . भावविसुद्धि पडिलेह णा--करणे विसुद्धि य // 8 // संजमजोए जुत्तो, अकुसलमणवयणकायसंरोहो / सीयाइपीडसहणं, मरणांतउवसग्गसहणं च // 9 // 47 लेश्याषट्रकसूक्तानि अतिरौद्रः सदा क्रोधी, मत्सरी धर्मवर्जितः। निर्दयो वैरसंयुक्तः, कृष्णलेश्याधिको नरः // 1 // अलसो मन्दबुद्धिश्च, स्त्रीलुब्धः परवञ्चकः / कातरश्च सदा मानी, नीललेश्याधिको भवेत् // 2 // शोकाकुलः सदा रुष्टः, परनिन्दात्मशंशकः / संग्रामे दारुणो दुःस्थः, कापोतक उदाहृतः // 3 // विद्वांश्च करुणायुक्तः, कार्याकार्यविचारकः। लाभालाभे सदा प्रीतः, पीतलेश्याधिको नरः॥४॥ क्षमावान् निरतत्यागी, देवार्चनरतो यमी / शुचीभूतः सदानन्दः, पद्मलेश्याधिको भवेत् // 5 // रागद्वेषविनिर्मुक्तः, शोकनिन्दाविवर्जितः / परात्मभावसंपन्नः, शुक्ललेश्यो भवेन्नरः // 6 // किण्हाए जाइ निरये, नीलाए थावरो नरो होइ / कापोताए तिरियं, पीताए माणुसो होइ / / 7 //