________________ अनित्यभाषसूक्तानि 222 संयुज्यन्ते वियुज्यन्ते, कर्मणा जीवराशयः। वायुना प्रेरिता इमे, पर्णपुञ्जा इव स्फुटम् // 21 // यत्प्रातस्तन्न मध्याह्ने, यत्तत्र निशि तन्नहि। विलोक्यतेऽत्र संसारे, तद्रागो विषयेषु कः ? // 22 // जरा जाव न पीडेइ, वाहि जाव न वढइ / जाव न इंदियहाणी, ताव धम्मं समायरे // 23 // परिमियमाउ जुव्वण-मसंठियं वाहिवाहियं देहं / परिणइविरसा विसया, अणुरज्जसि तेसु किं जीव ! // 24 // सामित्तणधणजुव्वण-रूवबलाउइसंजोगा। अइलोला घणपवणा-हयपायवपक्कपत्तं व्य // 25 // तित्थयरा गणहारी, सुरवइणो चक्किकेसवा रामा / संहरिया हयविहिणा, सेसजीयाणं तु का वत्ता ? // 26 // कालदण्डे स्थिते मूनि, संसारे क्रियते कथम् ? / लक्ष्मीविषयबन्धूनां, प्रत्याशा मोहकारिणी // 27 // स्थिराशा क्रियते तस्यां, कथं लक्षयां चलैव सा / यदुद्योतोऽपि जायेत, व्यामोहस्यैव कारणम् // 28 // अत्थायोत्थाय बोद्धव्यं, किमद्य सुकृतं कृतम् / आयुष्यखण्डमादाय, रविरस्तमयं गतः // 29 // श्वः कार्यमद्यकुर्वीत, पूर्वाह्ने चापराह्निकम् / मृत्यु¥व प्रतीक्षेत, कृतं चास्य न वा कृतम् // 30 //