________________ 112 सुभाषितसूक्तरत्नमाला पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे अ पडिक्कमणं / असदहणे अ तहा, विवरीअपरूवणाए अ. // 10 // आवश्यकनी अवश्य कर्तव्यता समणेण सावगेण य, अवस्सकायव्वं हवइ जम्हा / अंतो अहोनिसस्स य, तम्हा आवस्सयं नाम // 11 // 'प्रतिक्रमणमिथ्यादुष्कृतनिन्दादय एकार्थाः॥" इनुच्चिय पडिकमणं, पच्छायावाइ भावओ सुद्धम् / भणियं जिणप्पवयणे, इहरा तं दव्यओ दिट्ठम् / / 12 // आरंभस्स निवारणं मुहमणोवित्तीइ जं कारणं, अक्खारीण निरोहणं दिणनिसापच्छित्तसंसोहणं / कम्माणं मुसुमूरणं तवसिरीभंडारसंपूरणं, तं धना भवनासणं अणुदिणं सेवंति आवस्सयं // 13 // काउस्सग्गनी समजण प्रलम्बितभुजद्वन्द्व-मूर्ध्वस्थस्याऽऽसितस्य वा / स्थानं कायाऽनपेक्षं यत् , कायोत्सर्गः स कीर्तितः // 14 // वासीचंदणकप्पो, जो मरणे जीविए य समसण्णो। देहे य अपडिबद्धो, काउसग्गो हवइ तस्स // 15 // 32 ज्ञानक्रिययोः सूक्तानि विधिकथनं विधिरागो, विधिमार्गे स्थापनं विधीच्छूनाम् / अविधिनिषेधश्चेति, प्रवचनभक्तिः प्रसिद्धा नः // 1 //