________________ मानक्रिययोः सूक्तानि अध्वस्तबीजोऽपि पुमान् विधत्ते, .. स्त्रिया विहीनो न हि वंशवृद्धिम् / . विना पुमासं न तु साप्यवन्ध्या, योगे द्वयोः स्यात्पुनरिष्टसिद्धिः // 2 // एकस्मिन् विपिने प्रदीप्तदहने दग्धो दवार्चिष्मता, चक्षुष्मानपि पङ्गुलो गतिरतोऽप्यन्धश्च भिन्नाशयौ / अन्धो मूनि दधाति चेदचरणं तत्तत्प्रणीताध्वना, धावन्नेप निरेति दीप्तदवतः पङ्गुश्च तद्योगतः // 3 // न केवलं तीक्ष्णमपीह शस्त्रं, करोति भङ्गं द्विषतां कदाचित् / न तेन हीनः प्रबलोऽपि योधः, पुनर्दियोगे रणसिद्धिरस्ति॥४॥ जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स / एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी न हु सुग्गईए॥ विहिसारं चिअ सेवइ, सद्धालू सत्तिमं अणुटाणं / दव्वाइदोसनिहओ वि, पक्खवायं वहइ तम्मि // 6 // धन्नाण विहीजोगो, विहीपक्खाराहगा सया धन्ना / विहिबहुमाणा धन्ना, विहिपक्खअसगा धन्ना // 7 // आसन्नसिद्धिआणं, विहिपरिणामो होइ उ सयकालं / विहिचाओ अविहिभत्ती, अभव्वजिअदूरभव्वाणं // 8 // देहे द्रव्ये कुटुम्बे च, सर्वसंसारिणां रतिः। जिने जिनमते संघ, पुनर्मोक्षाभिकाङ्क्षिणाम् // 9 //