________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला संसाराम्भोधिबेडा शिवपुरपदवी दुर्गदारिद्रयभूभृद्भङ्गे दम्भोलिभूता सुरनरविभवप्राप्तिकल्पद्रुकल्पा / सामाइयं कुणंतो, समभावं सावओ अ घडिअदुगं / आउं सुरेसु बंधइ, इत्तियमित्ताइ पलियाई // 16 // तिव्वतवं तवमाणो, जे नवि निवइ जम्मकोडीहिं / तं समभावभाविचित्तो, खवेइ कम्मं खणद्वेण // 17 // जे केवि गया मोक्खं, जे वि य गच्छंति जे गमिस्संति / ते सव्वे सामाइय-माहप्पेण मुणेयवा // 18 // किं तिव्वेण तवेणं, किं च जवेणं वि चरित्तेण / समयाइ विण मुक्खो, न हु हुओ कहवि न हु होइ // 19 // यदा सव्वसामाइयं काउमसत्तो, तदा देससामाइयंपि ताव बहुसो कुज्जा / तथा जत्थ वा विसमई अच्छइ वा, निव्वावारो सवत्थ सामाइयं करेइ / जीवो पमायबहुलो; बहुसोवि अबहुविहेसु अत्थेसु / एएण कारणेण, बहुसो सामाइयं कुज्जा // 20 // "आया सामाइए, आया सामाइअस्स अहे // " “जाहे खणिओ ताहे सामाइअं करेइ // " अनिरिक्खियापमज्जिय थंडिले ठाममाइ सेवंतो। हिंसाऽभावेवि न सो कडसामाइओ पमायाओ // 21 //