________________ सासायिकसूक्तानि जन्मलक्षवतरुणै-यन्नैव क्षीयते क्वचित् / मनः शमरसे लग्नं, तत्कर्म क्षपयेत्क्षणात // 7 // प्रणिहन्ति क्षणार्द्धन, शाम्यमालम्ब्य कर्म यत् / तन्न हन्यान्नरस्तीत्र-तपसा जन्मकोटिभिः // 8 // सामायिअं तु काउं, गिहकज्जं जो वि चिन्तए सड्ढो / अट्टरुद्दोवगओ, निरत्थं सामाइशं तस्स // 9 // दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवण्णस्स खंडियं एगो। एगो पुण सामाइअं, करेइ न पहुप्पए तस्स // 10 // निन्दपसंसासु समो, समो य माणावमाणकारीसु / समसयणपरियणमणो, सामाइअसंगओ जीवो // 11 // सामायिक माहात्म्य सामायिकं च मोक्षाङ्गं, परं सर्वज्ञ भाषितम् / वासीचन्दनकल्पाना-मुक्तमेतन्महात्मनाम् // 12 // कर्म जीवं च संश्लिष्टं, परिज्ञायाऽऽत्मनिश्चयः / विभिन्नीकुरुते साधुः, सामायिकशलाकया // 13 // रागादिध्वान्तविध्वंसे, कृते सामायिकांशुना / स्वस्मिन् स्वरूपं पश्यन्ति, योगिनः परमात्मनाम् // 14 // अयं प्रभावः परमः, समत्वस्य प्रतीयताम् / यत् पापिनः क्षणेनापि, पदमियति शाश्वतम् // 15 //