________________ 108 सुभाषितसूक्तरलमाला भवति हि जिनपूजाजनितभावविशुद्धिप्रकर्षेण चारित्रमोहनीयक्षयोपशमसद्भावात्कालेनाऽसदारम्भेभ्यो निवृत्तिः, प्रयजना एव (जिनपूजा), तया जिनपूजा-प्रवृत्तिकाले वाऽसदारम्भाणामसम्भवाच्छुभभाव संभवाच्च तभिवृत्तिफलासौ भवतीति उच्यते // प्रभुस्नात्रजलालीढा, वन्दनीया मृदप्यभूत् / गुरूणां किल संसर्गा-दगौरवं स्याल्लयोरपि // 36 // 30 सामायिकसूक्तानि तिणि सहस्सपुहुत्तं, सयपुहुत्तं च होइ विरईए। एगभवे आगरिसा, एवइआ हुंति नायव्वा // 1 // तिन्नि असंखसहस्सा, सहसपुहुत्तं च होइ विरईए / नाणाभवे आगरिसा, एवइया हुन्ति नायव्या // 2 // सामाइअपोसहसंठिअस्स, जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधव्यो, सेसो संसारफलहेऊ // 3 // . त्यक्तातरौद्रध्यानस्य, त्यक्तसावद्यकर्मणः / मुहूर्त समता या तं, विदुः सामायिकवतम् // 4 // जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे णियमे तवे / तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासि // 5 // जो समो सव्वभूएमु, तसेसु थावरेसु य / / तस्स सामाइ होइ, इइ केवलिभासि // 6 //