________________ 101 जिनबिम्बसूक्तानि यत्त्वयोपार्जितं वित्तं, यशोवीर ! प्रतिष्ठया / तल्लक्षगुणितां नीतं, यशो वीरप्रतिष्ठया // 25 // सत्कीर्तिवल्लीगुरुकुलकन्द, सद्धर्मकल्पद्रवनावलम्बम् / निर्वाणसौधादिमपीठवन्धं, जिनेन्द्रचैत्यं सुकृती करोति // 26 // निष्पन्नस्यैवं खल, जिनविम्वत्योदिता प्रतिष्ठा तु / दशदिवसाभ्यन्तरयः, तद्भवनं स्फातिमद्भवति // 27 // आचार्यैः पाटोय. साधुभिः ज्ञानसक्रियः / जैनवित्रैः पुलकी प्रतिष्ठा क्रियतेऽहतः // 28 // प्रतिष्ठाप्या जिवाणां, प्रतिमा निर्मिता नवाः / विधिना सूग्मिन्त्रेण, गुरुणा ब्रह्मचारिणा // 29 // जिननिमानी स्थापना अंगे सगजवा योग्य वरिससयाओ उई, ज किंवं उत्तमेहि संठवियं / वियलंगु विय पूजा, तं विवं निष्फ क)लं न जओ // 30 // एकादशाङ्गले योऽभ्यधिक प्रमाणा जिनमूर्तिः प्रासादे पूजनीया न तु स्वहे // गिहपडिमाणं पुरओ, बलिवित्धारो न वेव कायव्यो / (निच) निन्हवणं टियसंझ-मच्चणं भावओ कुज्जा // 31 // जैनमंदिरमा पवासण वनाववान विधान देवतावसरं कुर्यात् , साद्धहस्तोर्वभूमिके / नी मिस्थितं कुर्याद् , देवतावसरं यदि // नीचैचिस्ततो वंश संतत्यापि सदा भवेत् // 32 //