________________ 100 सुभाषितसूकरत्नमाला उच्चैश्चैत्यानि जैनानि, ग्रामाकरपुरादिषु / कोटिशः कारयामास, स चक्री परमार्हतः // 16 // . ग्रामाकरपुरद्रोण-मुखादिषु स उच्चकैः / कोटिशोऽकारयच्चैत्यान्नद्रीनिव नवोत्थितान् // 17 // शाश्वती प्रतिमाओना प्रमाणनी साक्षी उस्सेहमंगुलेणं, अहउडूढमसेससत्तरयणीओ। तिरिलोए पंचधणुसय-सासयपडिमा पणिवयामि // 18 // ज्योतिष्कगतचैत्यानां, न मानमुपलभ्यते / प्रायः क्वाप्यागमे तस्मादस्माभिरपि नोदितम् // 19 // स्वाम्यप्याख्यत्समुद्दिश्य, समवसरणं निजम् / सर्वानहदतिशयान्, जिनार्चा स्थापनामपि // 20 // जे ते देवेहिं कया, तिदिसि पडिख्वगा जिणवरस्स / तेसि पि तप्पभावा, तयाणुरूपं हवइ रूवं // 21 // "पुव्वधरकालविहिआ, पडिमाइ (उ) संति केसु वि पुरेसु // " श्रीजिन प्रतिष्ठानो प्रभाव अवहणइ रोगमारिं, दुभिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे / भावेण किरमाणा, सुपइट्ठा सयललोयस्स // 22 // जिणबिंबपइट्टासु, सुहकज्जेसु लग्गइ जं च / तं चिय दव्वं सहलं, दुग्गइजणणं हवइ सेसं // 23 // एवं नाऊण सया, जिणवरबिंबस्स कुणह सुपइटू] / पावेह जेण जरमरण-वज्जियं सासयं ठाणं // 24 //