________________ जैनसिद्धान्तसूक्तानि अपुच्चो कोइ धुवं, पभावो जिणिंदवयणस्स / जं निसुणिऊण तिरिया-वि जंति वेरग्गमग्गंमि // 14 // इय चिंतिऊण सविसेस-मायरं तेसिं दसए सेट्ठी। भव्वेसु पक्खवायं, वहंति जं वीयरागा वि // 15 // साहम्मिवच्छलं जेण, जिणिदेहि भुवणपणएहिं / सम्मत्तसुद्धिहेडं, निदिई धम्मियजणस्स // 16 // 26 जैनसिद्धान्तसूक्तानि कत्थ अम्हारिसा पाणी, दूसमादोसदृसिआ। हा अणाहा कहं हुँता, न हुँतो जइ जिणागमो // 1 // आगमं आयरंतेण, अत्तणो हियकंखिणो / तित्थनाहो गुरू धम्मो, सव्वे ते बहुमन्निया // 2 // बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां, नृणां चारित्रकाक्षिणाम् / अनुग्रहार्थं सर्वज्ञः, सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः // 3 // तद्गीः सुधादीधितिदीप्तिदीप्ता,नाऽकणि कर्णैः किमु ते सकर्णाः। करोत्करैर्यः कुरुते नलिन्याः, नोद्भासनं को नलिनीपतिः सः॥४॥ अहामलगपमाणे, पुढविकायंमि हुति जे जीवा / ते पारेवयमित्ता, जंबूदीवे न मायन्ति // 5 // एगमि उदगबिंदुमि, जे जीवा जिणवरेहि पन्नत्ता / ते जइ सरसवमित्ता, जंबूदीवे न मायन्ति // 6 //