________________ सुभाषितसूकरत्नमाला आमे घडे निहत्तं, जहा जलं तं घडं विणासेइ / इअ सिद्धंतरहस्सं, अप्पाहारं विणासेइ // 7 // धर्मध्वंसे क्रियालोपे, स्वसिद्धान्तार्थविप्लवे। अपृष्टेनाऽपि शक्तेन, वक्तव्यं तन्निषेधितुम् // 8 // सव्वत्थ संजमं सं-जमाओ अप्पाणमेव रक्खिज्जा / मुंचंति अइवायाओ, पुणो विसोही न याऽविरई // 9 // मोहस्सेवोवसमो, खओवसमो चउण्डं धाईणं / उदयक्खयपरिणामा, अटण्हमवि होंति कम्माणं // 10 // सुवैद्यवचनाद्यद्वद् , व्याधेर्भवति संक्षयः / तद्वदेव हि तद्वाक्याद्, ध्रुवः संसारसंक्षयः // 11 // वेसागिहेसु गमणं, महा विरुद्धं जहां कुलवहणं / जाणाहि तहा सावय !, सुसारगाणं कुतित्थेसु // 12 // जम्हा न मुत्तिमग्गे, मुत्तूणं आगमं इह पमाणं / विज्जइ छउमत्थाणं, तम्हा तत्थेव जइयव्यं // 13 // नत्थि परलोकमग्गे, पमाणमन्नं जिणागमं मोत्तं / आगमपुरस्सरं चिय, करेइ तो सव्वकिच्चाई // 14 // जंजीयमसोहिकरं, पासत्थपमत्तसंजयाईहिं / बहुएहिं वि आयरियं, न पमाणं सुद्धचरणाणं // 15 // जं सब्बहा न सुत्ते, पडिसिद्धं नेव जीववहहेउं / तं सव्वं पि पमाणं, चारित्तधणाण भणियं च // 16 //