________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला संविग्गा विहिरसिया, गीयत्थतमा सूरिणो पुरिमा / न य ते सुत्तविरुद्धं, सामायारिं परूविति // 26 // जं बहुखायं दीसइ, न य दीसइ कह विभासियं सुत्ते / पडिसेहो वि न दीसइ, मोणं चिय तत्थ गीयाणं // 27 // प्रायश्चित्तं गुरूणां हि, वचांसि निखिलनसाम् / नातिक्रान्तगुरूणां हि, क्रिया क्वाऽपि फलेग्रहिः // 28 // ___ 20 श्रीवीतरागशासनाराधनासूक्तानि अर्हतस्त्रिजगद्वन्द्यान् , सिद्धान् विध्वस्तबन्धनान् / साधूश्च जैनधर्म च, प्रपद्ये शरण त्रिधा // 1 // महावतानि पञ्चैव, षष्ठकं रात्रिभोजनम् / विराधितानि यत्तत्र, मिथ्यादुष्कृतमस्तु मे // 2 // अर्हन्तः शरणं सन्तु, सिद्धाश्च शरणं मम / शरणं जिनधर्मों मे, साधवः शरणं सदा // 3 // कदाऽहं सुगुरोरन्ते, परिव्रज्यां यथोदिताम् / . करिष्यामि गताशेष-कर्मनिर्मूलनक्षमाम् // 4 // यदपीष्टं प्रियं कान्तं, चिरकालं च लालितम् / शरीरमन्तिमोच्छ्वासे, तदपि व्युत्सृजाम्यहम् // 5 // मस्तके चाञ्जलि न्यस्य, बमाण विशदाक्षरम् / नमोऽहंड्यो भगवद्भयो, नमो मे धर्मसूरये // 6 //