________________ श्रीवोतरागशासनाराधनासूक्तानि यातं भोगाभिलारखिलमिदमहो ! जीवितं तावकीनं, यत्नो नैव त्वयाऽज्ञ ! कृत इह जननक्लेशविच्छेदहेतुः। त्यक्त्वासक्तिं गजेन्द्रश्रुतिशिखरचलेष्वेषु भोगेषु शीघ्रं, आत्मानन्दप्रकाशं कुरु हृदयगतं येन शश्वत्सुखं स्यात् // 7 // वरमग्गिम्मि पवेसो, वरं विसुद्धण कम्मुणा मरणं / मा गहियव्ययभङ्गो, मा जीअं खलिअसीलस्त // 8 // कइया संविग्गाणं, गीअत्थाणं पायमले / सयणाइसंगरहिओ, पव्वजं संपवज्जिासं // 9 // छउमत्यो मूढमणो, कित्तिय मित्तं च संभरइ जीवो / जं च न सुमरामि अहं, मिच्छा मि दुक्कडं तस्स // 10 // जस्म कए आहारो, तस्सटूठा चेव होइ आरंभो / आरंभे पाणिवहो, पाणिवहे दुग्गई चेव // 11 // तवनियमेण य मोक्खो, दाणेण य हुँति उत्तमा भोगा। देवच्चणेण रज्जं, अणसणमरणेण इन्दत्तं // 12 // आलोयसु अझ्यारे, वयाई उच्चरसु खमसु जीवेसु / वोसिरमु भाविअप्पा, अटूठारसपावठाणाई // 13 // चउसरणं दुक्कडगरि-हणं च सुकडाणुमोयणं कुणम् / मुहभावणं अणसणं, पंचनमुक्कारसरणं च // 14 // ज्ञानाचारेऽष्टभेदेऽभूद्, योऽतिचारः कथञ्चन / समस्त्मपि निन्दामि, तं त्रेधा शुद्धमानसः // 15 //