________________ 68 सुभाषितसूक्तरत्नमाला मुहसीलाओ सच्छंदचारिणो वेरिणो सिवपहस्स। आणाभट्ठाओ बहु-जणाओ मा भणइ संघु त्ति // 6 // पुढविदगअगणिमारुअ-वणस्सइ तह तसाण विविहाणं / मरणन्ते वि न पीडा, कीरइ मणसा तयं गच्छं // 7 // यस्य चाराधनोपायः, सदाज्ञाभ्यास एव हि। यथाशक्ति विधानेन, नियमात् स फलप्रदः // 8 // जिणाणाए कुणंताणं, सव्वं निव्वाणकारणं / सुन्दरं पि सबुद्धीए, सव्वं भवनिबन्धणं // 9 // इहलोयम्मि अकित्ती, परलोए दुग्गइ धुवा तेसिं / आणं विणा जिणाणं, ये ववहारं ववहरन्ति // 10 // जा जयमाणस्स भवे, विराहणा सुत्तविहिसमग्गस्स / सा होइ निज्जरफला, अज्झप्पविसोहिजुत्तस्स // 11 // संथरणमि असुद्धं, दुण्हं वि गिण्हन्तदिन्तिआणऽहिकं / आउरदिढतेण, तं चेव हियं असंथरणे // 12 // सो हु तवो कायव्यो, जेण मणो मंगुलं न चिंतेई / / जेण न इंदियहाणी, जेण य जोगा न हायति // 13 // जिणदिक्खं पि गहेडे, जयणविहुणा कुणंति तिब्वतवं / जिणआणखंडगा जे, गोयम ! गिहिणो वि अब्भहिआ॥१४॥ आणारुइस्स चरणं, तभंगे जाण किं न भग्गं ति। आणं च अइकंतो, कस्साएसा कुणइ सेसं // 15 //