________________ मानसूक्तानि 67 नातः परमहं मन्ये, जगतो दुःखकारणम् / यथाऽज्ञानमहारोगो, दुरन्तः सर्वदेहिनाम् // 16 // अज्ञानं खलु कष्टं, क्रोधादिभ्योपि सर्वपापेभ्यः / अर्थ हितहितं वा, न वेत्ति येनावृत्तो लोकः // 17 // जंजयइ अगीयत्थो, जं च अगीयत्थनिस्सिओ होइ / बट्टावेइ य गच्छं, अणंतसंसारिओ होइ // 18 // नाहं बालो महाराज, न बाला मे सरस्वती / अपूर्ण पञ्चमे वर्षे, वर्णयामि जगत्त्रयम् // 19 // 19 श्रीजिनाज्ञासूक्तानि जत्थ य उसहाहाणं, तित्थयराणं सुरिन्दमहियाणं / कम्मविमुक्काणं, आणं न खलिज्जइ सो गच्छो // 1 // आणाइ वो आणाई संजमो तह य दाणमाणाए / आणारहिओ धम्मो, पलालपुलु व्व पडिहाइ // 2 // जर तुसखंडणमयमंडणाई रुण्णाइ सुन्नरम्नंमि / विहलाई तह जाणयु, आणारहियं अणुढाणं // 3 // बाणाखंडणकारी, जइ वि तिकालं महाविभूईए / एह वीयराय, सव्वं पि निरत्ययं तस्स // 4 // सो साहू एगा, साहुणी सावओ वि सड्ढी वा / बाजुत्तो संघो, सेसो पुण अढिसंघाओ // 5 //