________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला मुलहो विमाणवासो, एगच्छत्ता य मेइणी सुलहा। , दुलहा पुण जीवाणं, जिणिंदवरसासणे वोही // 52 // दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं, प्रादुर्भवति नाङ्कुरः।। कर्मबीजे तथा दग्धे, नाऽऽरोहति भवाङ्कुरः // 53 // जं बोहिरयणरहिओ, चउदसरयणाहिवो वि रोरु ब्व / बोहिरयणेण सहिओ, नूणं रोरो वि चक्कि व्च // 54 // चकित्तं इन्दत्तं, अहमिन्दत्तं जणाण इह सुलहं। अकयसुकयाण न उणो, जिणिंदवरसासणे बोही // 55 // वीतरागं सर्वविद-माप्तं त्रैलोक्यपूजितम् / विनाऽर्हन्तं न मे कश्चिन् , नमस्योऽस्ति कदाचन // 56 // तादृक्पुण्योदयाभावाद, नास्ति प्राप्तिद्वयं तव / एकं वृणु वरं मन्त्रिन्नित्याचष्टे सुरेश्वरी // 57 // सतीमतल्लिका स्माह, प्राणेशं सा कृताञ्जली। भवाङ्कुरनिभं पुत्रं, मुक्त्वाईन्मन्दिरं वृणु // 58 // दर्शनं मुक्तिबीजं च, सम्यक्त्वं तत्त्ववेदनम् / दुःखान्तकृत् सुखारम्भः, पर्यायाः तस्य कीर्तिताः॥५९॥ सम्मत्तं सामाइयं, संतोसो संजमो अ सज्झायं / पंच सयारा जस्स, न पयारो तस्स संसारे // 60 // बोधिशब्दार्थः-बोधि जिनोक्तधर्मावाप्तिलक्षणं इति उत्तराध्ययने भावविजयगणिकृतटीकायां तृतीयाध्ययने गाथा॥१९॥