________________ गौचरीसूक्तानि वाहवहनाडिपायं, पढमं उप्पाडिऊण बञ्चिज्जा। धरणियलं नो दंडं, परिज जा लब्भए भिक्खं // 2 // उसमस्स य पारगाए, इक्खुरसो आसि लोगनाहरूस / सेसाण य मन्नं, अभियरससरिसोयमं आसि // 3 // अक्खीणना लिलाद-संजुओ जबाट गोयलो भयत्र / जस्स पसाएमा जवि साहुणी मुत्थिया मरहे // 4 मुंजआहाल सम्म न य जो पडिक मह लुदो / सव्वजिणाणाविमृहस्सा तस्स आराणा नथि / / 5 / / यतिध्यानादिलो यो, गुर्वाज्ञायां व्यवस्थितः। सदाऽनारम्भिमस्तस्य, सर्वसंपल्करी मता // 6 // वृद्धाद्यर्थमसंगस्य, अमरोपमयाप्टतः / गृहिदेहोपकाराय, विहितति शुभाशयात् // 7 // प्रव्रज्यां प्रतिपन्नो यस्तहिरोधेन वर्तते / असदारम्भिणस्तस्य, पौरुपनीति कीर्तिता // 8 // निस्वान्धपङ्गयो थे तु, न शक्ता वै क्रियान्तरे / भिक्षामटन्ति वृत्यर्थ, वृत्तिभिक्षेयमुच्यते // 9 // 14 वैराग्यसूक्तानि क्वचिद् वीणावाद्यं क्वचिदपि च हा हेति रुदितं, क्वचिद्विद्वद्गोष्ठी क्वचिदपि सुरापानकलहः /