________________ 42 सुभाषितसूक्तरत्नमाला यत्सुखमिहैव साधो-लोकव्यापाररहितस्य // 36 // विक्रमोऽरिष्विवारीणां, वाग्वादिष्विव वादिनाम् / मुनीनामवदातं हि, विराद्धेषु सहिष्णुता // 37 // न च राजभयं न च चौरभयं, वरकीर्तिकरं नरदेवनतम् / इहलोकसुखं परलोकहितं, श्रमणत्वमिदं रमणीयतरम् // 38 // . स्नेहमूलानि दुःखानि, रसमूलाच व्याधयः / लोभमूलानि पापानि, त्रीणि त्यक्त्वा सुखी भव // 39 // फरुसवयणेण दिणतवं, अहिखिवंतो य हणइ मासतवं / वरिसतवं सवमाणो, हणइ हणंतो य सामन्नं // 40 // जोए करणे सन्ना-इंदियभोमाइंसमणधम्मे य / सीलंगसहस्साण, अट्ठारसगस्स निप्फत्ती // 41 // ताम्बूलं सूक्ष्मवस्त्राणि, स्त्रीकथेन्द्रियपोषणम् / दिवा निद्रा सदा क्रोधो, यतीनां पतनानि षट् / 42 // व्रते ह्येकाइमात्रेऽपि, न स्वर्गादन्यतो गतिः॥ [लोकार्धम् ] सुरगणसुहं समत्तं, सव्वद्धा पिंडिअं अनंतगुणं / / णवि पावइ मुत्तिसुहं, णंताहि वि वग्गवग्गेहि // 43 // 13 गौचरीसूक्तानि आहाकम्मनिमंतण-पडिसुणमाणे अइक्कमो होइ / पयभेयाइ वइक्कम, गहिए तइएयरो गिलिए // 1 //