________________ 56 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य मूल धर्म सभा के विभिन्न वर्गों की इस अटूट साम्प्रदायिक सहोदरता से जैन धर्म समृद्ध हो रहा था क्योंकि उसकी खुबियाँ मत से जुडी हुई थीं। अतः भाषागत प्रादेशिक तथा साम्राज्यिक निकष उसके विकास तथा एकत्मकता के मार्ग में बाधा बनकर नहीं आए। जैन साधु तथा साध्वियाँ मुक्त होकर एक से दूसरे प्रदेश तथा राज्य में विचरण करते और उनको हर स्थान से आदर तथा सम्मान प्राप्त होता था। भारत का इतिहास और भूगोल निरंतर यात्रा करने वाले श्रमणों के प्रति ऋणी है, जो नंगे पैर चलते, व्रतस्थ रहते तथा सांस्कृतिक एकता तथा अखंडता को बनाए रखते। गृहत्यागी जैन धर्म गुरु इन्द्रियजीत, घुम्मकड तथा मितभाषी थे। ये पूजनीय जैनधर्मी सर्दियों में ध्यान धारण करते और गर्मियों में चिलचिलाती धूप में बाहर निकलते। विषय वासना पर संयम, नंगे पैर घूमना तथा धर्म ग्रंथों पर अधिकार बनाए रखना ये जैन धर्म की प्राथमिक आवश्यकताएँ थीं और अब भी हैं। न केवल शासकों बल्कि हर वर्ग, जाति, समुदाय, व्यवसाय के लोगों ने जैनधर्म के प्रति अपनी निष्ठा जतायी। महामंडलेश्वरों, महासामंतों, सेनापतियों, व्यापारियों, स्त्री-पुरूष सभी ने जैन-प्रार्थनागृहों, श्रमणों तथा धर्मगुरुओं के प्रति अपनी श्रद्दा भक्ति दर्शायी। जैनों के आश्रम तथा प्रार्थनागृह राज्य तथा लोंगों के अनुदानों से भरे थे, 500 निवर्तन की उपजाऊ जमीन जैन प्रार्थना गहों को उपहारस्वरूप दी गई थी। बाहुबलि श्रेष्ठी, एक प्रभावशाली व्यापारी की बिनती पर राजा विक्रमादित्य ने जैनमंदिर के लिए 50 निवर्तन की जमीन का प्रबंध किया। धर्मगामुंड सराफ ने धर्मशाला तथा जिनालय बनवाया। इसी तरह कलियम्मा तथा जाबुलगेरी के गांव के मुखिया ने अण्णिगेरी में चेदिया (चैत्य जिनालय) का निर्माण किया था। इस प्रकार सम्राट से लेकर सामान्य नागरिकों से जैन भक्तों का संघटन बना था। सक्षम समर्थकों के व्यवस्थित कार्य, सीधे तथा अन्य स्रोतों के द्वारा पीढियों तक मिलने वाली राज-प्रत्याभूति के कारण जैन संघ फूला फला। दक्षिण के राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास के पूर्वमध्यकाल में पलसिगे (पलसि, हलसि, पलासिका) एक महत्वपूर्ण जैन केंद्र माना जाता था। पूर्वी कदंबों के शासन काल (345-545) के दौरान पलसिगेनाडु (विषय मंडल) ने बहुत ही महत्व का स्थान अर्जित किया था। फिर आगे चलकर पलसिगे को कुंतलनाडु में मिलाया गया और जब इसे राजधानी का दूसरा शहर बनाया गया तो उसको बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। पलासिका-पन्निरचासिर (2000) की भौगोलिक सीमाएँ उत्तर केनरा के उत्तरी प्रदेश के खानापुर तथा बैलहोंगल तालूकों में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org