________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 51 सिंदों की वंशावली तथा क्रम दोनों अस्पष्ट है। अबतक प्राप्त शिलालेख भी उनके राजवंश के इतिहास पर प्रकाश नहीं डाल पाये हैं। दिलचस्प बात यह है कि प्राप्त डाटा सिंद तथा सेंद्रक एक ही मूल की दो शाखाएँ होने की संभावना की ओर संकेत करते है। दोनों नागवंशी तथा जैनधर्म में विश्वास रखनेवाले थे। इसप्रकार दोनों राजवंशों का समकक्षता पर विचार करना जरूरी है। आयचराज उपनाम आयचपराज तथा आचाराज (उसका बहनोई) जैन धर्म को समर्पित थे जिनके लिए जिनपति दैवं ही था। दोनों सिंद परिवार से थे। दोनों कल्याण के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1125) के अधिनस्थ थे। __ आचरस उपनाम आचराज (बरमदेव का पुत्र) ने किसुकाडु किसुवोलल के आसपास के प्रांत पर महामंडलेश्वर के रूप में शासन किया। जैसा कि ऊपर उल्लेखित है आचराजा अब्बेयगेरी ( रोण तालुका, जिला गदग) का पेरगडे (स्थान प्रमुख) था। आचराजा, बेळ्ळवोल-300 तथा नरेयंगल 12 का प्रमुख था जिसने पहले बनवाये गए जैनमंदिरों का जीर्णोद्धार किया। एक शिलालेख में यह उल्लेखित है कि सिंदों का प्रमुख निडुदोळ (दीर्घबाहु) धरणेन्द्र से जन्मा था। (फणिराज़, नागराज) सिंदों के ध्वज पर फन फैलाए नाग का चित्र था, जिन्होंने सिंदवाडिनाडु पर शासन किया अथवा सिंद-विषय सेंद्रक भुजगेन्द्र थे तथा सेनवारस का फणिध्वज था। सांतर मूलतः महा-उग्र वंश के थे। सातवाहन नागपूजक थे। बनवासी का नागरखंड प्रदेश नागों का प्रांत था तथा नाग जनजाति की मातृभूमि थी। रेंजोल के सिंद स्वयं के बारे में यही कहते हैं कि वे नागपति धरणेन्न की पटरानी पद्मावती देवी के वरदान से उनका जन्म हुआ था। सिंदों की प्रशासनिक भाषा कन्नड थी। परवर्ती शाखा के सिंद शिवभक्त थे। इसप्रकार चालुक्य राजा विद्वान मंत्रियों के परामर्श तथा सामंतों के सेनाबल पर हावी हो गए थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org