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________________ OBS PRESEASEAN अध्याय पाँच वर्णमय जैन संघ ESH DISCLAIMERIES आरंभ जैनधर्म की अपनी एक अत्यंत गतिशील तथा धार्मिक परंपरा रही है, जो दक्षिण प्रांत को सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्द कर रही थी। ऐतिहासिक विकास तथा प्रक्षेपवक्र पर युगानुकूल चर्चा तथा अनुशीलन की आवश्यकता है। अतः इस अध्याय में जैनों की ऐतिहासिक संरचना का विशेषकर चालुक्यों के इतिहास के परिप्रेक्ष्य में, जैनों के स्थान पर प्रकाश डालते हुए, विचार करने की कोशिश की जा रही है। जैनों ने अपनी राजनीतिक गतिविधियाँ सुदूर अतीत में बहुत पहले से ही शुरू की थी। सभी 24 तीर्थंकर क्षत्रिय थे। इसकी ऐतिहासिक साक्ष्य 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ के उदगम से मिलती है और फिर उसके बाद अधिक से अधिक जिन पार्श्व तथा महावीर क्रमशः 23 वें तथा 24 वें तीर्थंकर से मिलनी शूरु होती है। महावीर के पाँच महान . व्रतों का उपदेश उनके पूर्वाधिकारी अर्हत पार्श्व द्वारा समर्थित नैतिक समीकृत उपदेशों के समान ही थे, किंतु उसमें थोडी सी भिन्नता थी। मगधन प्रदेश को अपना केंद्र बनाकर, जैन धर्म धीरे धीरे दक्षिण में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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