________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 49 पुलकेशी द्वितीय (609-42) के चिपलुन के घोषणापत्रों में उल्लेखित है कि सेंद्रक श्री वल्लभ सेनानंदराज पुलकेशी का मामा था। सेंद्रक तथा चालुक्यों में वैवाहिक संबंध थे, राजा कीर्तिवर्म प्रथम ने (566-96) जो कि पुलकेशी के पिता थे, सेंद्रक राजकुमारी से विवाह कर लिया था। भीमशक्ति सेंद्रक, सातवीं सदी के शिलालेख में पलुकेशी द्वितीय की सेवा में सामंत के रूप में नज़र आता है। वाणशक्ति तथा कुंडशक्ति मुळगुंद के राजपाल थे जो कि छठी तथा सातवीं सदी का जैनों का प्राचीन तीर्थ है। दुर्गशक्ति, कुंदशक्ति का पुत्र तथा विनयशक्ति का प्रपौत्र अनेकांतमत का एक अन्य श्रद्धेय धवल स्थान पुलगेरि के अभिलेख में उल्लेखित है। दुर्गशक्ति ने प्रसिद्ध शंख जिनालय को 630 में पुलिगेरे के पास जमीन दान की थी। जबकि रविशक्ति ने शांतिनाथ बसदी को दान में जमीन दी थी और इसके दानी थे पुरुलूर संघ के आचार्य श्रीनीधि के भक्त आचार्य अभयनंदी थे। श्री पोगिल्लि सेंद्रक महाराज अपने निवास स्थान जिड्दुलिगे, एक और जैन केंद्र, से सातवीं सदी के उत्तरार्ध ( 680 ए.डी.) में बनवासी 12000 प्रभाग पर शासन कर रहे थे। सेंद्रकों के भूषण नागशक्ति ने चालुक्य राजा को 749 में गाँव दान में देने की प्रार्थना की थी। कण्णशक्तिवरस का नाम सातवीं सदी के पुरालेख में आता है। इसी प्रकार जयशक्ति तथा निकुमभल्लशक्ति के नाम कळवन पुरालेखों तथा बगुम्रर अनुदान में आते हैं। उपर्युक्त विवरण सेंद्रकों के पूर्वी स्थान को निर्धारित करते हैं। भानुशक्ति के निवेदन पर रविवर्म के पुत्र कंदंब राजा हरिवर्म ने अपने शासन के पाँचवे वर्ष में मरदे ग्राम के पवित्र लोगों के लिए तथा पवित्र रीति रिवाज निभाने के लिए दान में दिया, जो कि अहरिष्टि श्रमण संघ की जायदाद थी जिसकी देखभाल आचार्य धर्मनंदी किया करते थे। (IA :VOI: VII. P.-32: JBBRAS, IX, CK1 NO 30 ई.स. 542, PP. III-14). ___ सेंद्रकों ने चौथी से आठवीं सदी तक बनवासी के कदंबों, बादामी के चालुक्यों तथा पूर्वी राष्ट्रकूटों को सामंतों के रूप में शासन किया। वे फणिकुल (नागकुल) से संबंधित थे। सेंद्र राजा की संतति में भानुशक्ति (519-30) का जन्म हुआ, जिसने उक्त परिवार का मूलपुरूष तथा भूषण होने का सम्मान प्राप्त किया। उसने कदंब राजा हरिवर्म (519-30) की सेवा की तब उसके पुत्र विजयानंद (533-33) की राष्ट्रकूटों के शासक देज्ज उपनाम देज्जिय के साथ सहबद्धता थी। जब चालुक्यों ने राष्ट्रकूटों पर अपना अधिपत्य जताया तो सेंद्रकों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org