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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 47 सेंद्रकों के वंश में आनेवाले परदादा का नाम सेंद्र था। पुलिगेरे का शिलालेख यह स्पष्ट बताता है कि सेंद्र राजवंश को चलाने वाला प्रथम पुरूष था। (भुजेगेन्द्रान्वय सेंद्रावनींद्र संतउ) (SII:XX. NO: 3: IA, VII : PP. 101-III). . सिंदों की तरह सेंद्रक भी चालुक्यों के अधीन थे। माधव-सत्ति अरस, आडूरु के सिदरस के उच्च अधिकारी, सेंद्रक कुल से थे। उसका उपनाम भी माधववात्त था। सेंद्रकों के प्रमुखों के नाम के अंत में अक्सर सत्ति या शक्ति आता है। सत्ति, शक्ति का ही भिन्न रूप है। भानुशक्ति तथा वाण सत्ती अरस कंदंब राजा पहरिवर्मन (519-30) को समर्पित थे। इंद्रानंद, विजयानंद मध्यमराजा का पुत्र, देज्ज महाराज का लाडला था, जो राष्ट्रकूटों के प्रथम राजा थे। वाणसत्ति और उसका पुत्र कुंदसत्ति क्रमशः मुळगुंद तथा पास ही के सिरगुप्पा के स्वामी थे। ___ सेंद्रक चालुक्यों के प्रति एकनिष्ठ थे। कुंदशक्ति के पुत्र दुर्गेशक्ति तथा सेनानंद ने राजा पुलकेशी द्वितीय को अपनी सेवाएं प्रदान की थी। इसी तरह देवशक्ति तथा सेंद्र महाराज पोगिल्लि दोनों क्रमशः विक्रमादित्य प्रथम तथा विनयादित्य के अधीनस्थ थे। इसी के समान निकुमभल्लशक्ति के पुत्र आदित्यशक्ति का प्रपौत्र तथा भानुशक्ति के प्रपौत्र जयशक्ति और माधवसत्ति कीर्तिवर्म द्वितीय के निम्न अधिकारी थे। ___पूर्वी चालुक्यों की एक शाखा, सातवीं सदी में उत्तर पश्चिम के गुजरात, खानदेश तथा आंध्रप्रदेश के कर्नूल क्षेत्र में स्थापित हुई थी। सेंद्रक मूलतः बनवासी 12000, प्रदेश के नागरखंड़-70 के क्षेत्र के थे। पहले नागरखंड रियासत का दूसरा नाम सेंद्रक राज्य था। सेंद्रक विषय में शिमोगा चिक्कमंगलूर, हावेरी तथा हासन जिले का कुछ भाग सम्मिलित था। सेंद्रक अवरेतिक-विषय के भी प्रमुख थे। अवतेरिक विषय अर्थात् आधुनिक उत्तर तथा दक्षिण कोंकण है। जिसमें ठाना, कोलाबा और रत्नागिरि जिलों का समावेश है। सकरेपटण के पुरालेख यह सूचित करते हैं कि दक्षिण कर्नाटक अंग के सेंद्रक राजा ने सिंहवर्म प्रथम (436-66) शासनकाल में पल्लव साम्राज्य का कुछ भाग बनाया था। प्राकृत भाषा में लिखित चन्द्रवळ्ळि के पाषाण शिलालेखों में (चौथी सदी) सयिंदिका (सेंद्रक) पहली बार दृष्टिगोचर हुए। यह अभिलेख तथा राजवंश के पूर्वी संदर्भ यह बताते हैं कि कदंब राजा मयुरवर्म (435-60) ने सयिंदक के प्रमुखों को परास्त किया। यह विवरण निश्चित करता है कि पल्लवराजा सिंहवर्मन प्रथम (43660) का पुरालेख तथा हलमिडि शिलालेख में उल्लेख है जिसमें वलविल्ली अग्रहार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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