________________ 46 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य विश्वास रखनेवाले स्वामीभक्त-फौजी-राज-परिवार के लोग, मध्य कर्नाटक प्रदेश के मूलनिवासी थे। प्रारंभ में वे आळुपाओं के स्वामीभक्त थे। साथ ही उन्होंने वातापी के चालुक्यों का भार भी वहन किया। राजनीतिक उतार चढाव के उत्पन्न होने से सेनवारों ने उनके विश्वासी सामंतों के रूप में राष्ट्रकूटों तथा कल्याण के चालुक्यों की सेवा की। विक्रमादित्य पंचम के शासनकाल (1008-15) 1010 में सेनवार परिवार के प्रमुखों में से कोई बनवासी प्रदेश का प्रभारी था। उसके बाद ग्यारहवीं सदी के मध्य में जीवितवार, उसके पुत्र जीवन वाहन और उसके पुत्र मारसिंह उपनाम मार ने चालुक्यों के सामंतों के रूप में राज किया। षष्ठं विक्रमादित्य (10761125) के लंबे शासनकाल में सेनवार राजकुमारों सूर्य तथा आदित्य को मंत्रियों के रूप में सेवा करने का अवसर मिला। राजसी चालुक्यों के निष्कासन से सेनवार राजवंश भी राजनीतिक विस्मरण में लुप्त हो गए। ___ खचरवंश के सोनवारों के पास फणिध्वज तथा मृगेन्द्र लोंछन (महावीर का प्रतीक) अर्थात सिंह का प्रतीक था। उन्होंने स्वयं को कूडलूरुपुर-वराधीश्वरस और कुडूलूरु परमेश्वरस के रूप में परिचित कराया। उससे भी अधिक उनका चित्रण . मृगेन्द्र तथा खाचर त्रिनेत्र के रूप में किया गया है। यह स्थान आधुनिक हरिहर है। जिसका पूर्वकाल में कूडलूर नाम था किंतु इसके लिए अनुसंधान की अभी आवश्यकता है। उन्होंने खुद को पद्मावती चरण सरोज भंग के रूप में घोषित किया है। जो अर्हत पार्श्व 23 वें तीर्थंकर की सेविका रूपी देवी है। ऐसा कहा जाता है कि सोनवार बंगाल के सेन के पूर्वज थे। ओ) सेंद्रक वंश चालुक्यों के संप्रभू कीर्तिवर्म प्रथम ने बनवासी तथा कदंबों के मांडलिक प्रथम ने सेंद्रकों की अधीनता स्वीकारने पर जोर दिया। दिलचस्प बात यह थी कि इस अधिनिकरण का सुखदायक अंत हुआ। कीर्तिवर्म ने सेंद्रक वंश के प्रमुख श्रीवल्लभ सेनानंद की बहन से विवाह कर लिया। सेंद्रक प्राचीन राजवंशों में से एक थे, जिन्होंने चौथी सदी में स्वयं को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित तो किया किंतु वे मात्र सामंत ही बने रहे। राजवंशों से सीधे जुडे हुए पुरालेख आज विद्यमान नहीं है और उनकी वंशावली, ऐतिहासिक विकास तथा उनके प्रवास के बारे में बहुत कम जानकारी प्रकाश में आयी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org