________________ 44 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य ऐतिहासिक सूचना को अंतःस्थापित करना। भले ही दरबारी कवियों ने अतिउत्तम राजप्रशस्तिपरक रचनाओं का निर्माण किया, जो कन्नड साहित्य के मध्यकाल की परंपरागत विधा खण्डकाव्य तथा चम्पु शैली में रची गयी थी पर इन सांतर कवियों ने अपना नामोल्लेख करना आवश्यक नहीं समझा। किंतु इन कवियों ने निश्चित ही इतिहासकारों, विद्वानों तथा साहित्यकारों की सहानुभूति एवं प्रशंसा प्राप्त की थी। भले की कुछ शिलालेखों में संस्कृत का उपयोग हो रहा था किंतु सातरों का प्रमुख माध्यम कन्नड ही था। तत्कालीन रचनाकार कन्नड के अभिजात साहित्य पंरपरा में प्रवीण थे और उन्होंने अत्यंत सहजता से कविता का निर्माण किया था। अतः कविता और इतिहास दोनों साथ-साथ चलते हैं। कुछ अभिलेख तो कन्नड देश की सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक इतिहास से संबंधित विपुल जानकारी उद्घाटित करते हैं। अपने सीमित प्रदेश में संतुष्ट सांतरों ने कभी भी अपनी सीमाओं को विस्तार देने की महत्वाकांक्षा नहीं रखी। इस प्रकार अपने सहस्त्र वर्षों के लम्बे इतिहास में उन्होंने दक्षिण के किसी न किसी श्रेष्ठ राजवंश चालुक्यों से लेकर विजयनगर साम्राज्य का प्रभाव ग्रहण किया था। होम्बुज ने प्राचीन मंदिरों, शिल्पों के साथ साथ बहुप्रज्ञ जैनों का एक मात्र स्थान बनने का सम्मान पाया है। सांतरों की राजधानी होम्बुज में दो हाथों वाली अंबिका की पाँच मूर्तियों का निर्माण किया गया था। दैत्याकर मंदिरों के गर्भगृह में अंबिका (कुष्मांडिनी) की असाधारण प्रतिमा स्थापित की गई थी। जो सुबह की लालिमा सी है और जिसकी आँखें तेज-पुंज है। यह बहुत ही अनोखी प्रतिमा है। जिसके पहलू में परिचारक हैं। जिसकी कमर कमनिय, जिसके दाहिने हाथ में आम्रलूंबी है और बायां हाथ गोद में बैठे बालक को सहारा दे रहा है। यह देवता कर्नाड मुकुट तथा अन्य गहनों से अलंकृत है। इस प्रतिमा को ऐहोळे की प्रतिमा से प्रेरित होकर बनवाया गया था। इस प्रतिमा से यह स्पष्ट होता है कि शिल्पकारों ने इस प्रतिमा को एक ताज़गी, एक नवीनता प्रदान की है और साथ ही पारंपरिक प्रवृत्ति का भी पालन किया है। यह सुंदर प्रतिमा आठवीं सदी के उत्तरार्ध की है। इसकी तथा चालुक्यों के अन्य शिल्पकला की चर्चा शिल्पकला अध्याय में होगी। 4. ऐ) सेनवार वंश सेनवार, जैन धर्म में विश्वास रखनेवाला एक कन्नड परिवार, जो छोटे राजवंशों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org