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________________ 42 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य बाद में यह एक आधार स्थान तथा मूल शहर बना। यहीं से सांतरों के राजनिवासियों की उन्नति और समृद्धि हुई। सांतरों का उदगम उतना धुंधला नहीं था। भले भी उसमें से कुछ में पौराणिकता की पुट दिया गया हो। जिनदत्त (जिन के आशिर्वाद से जन्मा) इस राजवंश का पूर्वज था, जो ऐतिहासिक आधार पर वह महा-उग्र-वंश का था। जिसका संबंध अर्हत पार्श्व के वंश से था। पौराणिक आधार पर शिलालेखों में यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि जिनदत्त के दादा, परदादाओं ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था और जिनदत्त राय के परदादा ने पांडवों के पक्ष में रहकर युद्ध किया था और उसे शंख देकर उसकी वीरता का सम्मान किया था। यहाँ इसका स्मरण होता है कि कैकेय के पूर्वजों ने भी कौरवों का पक्ष लेकर महाभारत के युद्ध में भांग लिया था और उनके परिवार की एक शाखा दक्षिण में स्थानांतरित होकर उत्तर कैनरा जिले के शरावति नदी के किनारे बस गई। राजा मृगेश्वरम की महारानी प्रभावती कैकेय राजवंश की राजकुमारी थी। राजा जिनदत्त अपने पिता की आदमखोरी आदत से खीझकर, सांतरों की ओर . पलटा और स्थानांतरित होकर आखिर पोंबुचा में बस गया। लोक्कियब्बे (पद्मावतीदेवि) की कृपा से वह सांतलिगे प्रांत के प्रमुख बन गए। यह ऐतिहासिक घटना लोक कथाओं, लोक साहित्य में आज भी जीवित है। * होम्बुज की प्राचीनता और इतिहास तथा उसकी भव्य संरचना, सांतरों के साथ उनका संबंध, ईष्टदेवता की भक्ति की प्रकृति तथा प्रमुख देवीपद्मावती आदि कुछ ऐसे विषय है जो आम लोगों के मन में जिज्ञासा पैदा करते हैं। होम्बुज के प्रार्थना मंदिर, दक्षिण के भव्य मंदिरों की तुलना में छोटे हैं। किंतु उनके शिल्पकला की भव्यता, कलावैविध्य, परिकल्पना की एकलता तथा रचना की मौलिकता आदि उसके आकार की लघुता की आपूर्ति करते हैं। वास्तव में वे अधिक सुंदर, शांत तथा सादगी से भरे तथा यथायोग्य अलंकृत हैं। वे पूर्वी चालुक्य, राष्ट्रकूट तथा अधिकतर परवर्ती चालुक्यों के काल की शिल्पकला के नमूने हैं। सांतर परिवार की एक अन्य प्रवृत्ति यह भी थी कि यह आदि से लेकर अंत तक राजवंशीय कुलवैर से मुक्त था। यह एक सुखद आश्चर्य है कि चारों भाइयों के बीच कभी सिंहासन के लिए भ्रातृ-वैर नहीं था और इनको प्रशिक्षण चट्टलदेवी दोड्डम्मा (चारों राजकुमारों की मौसी) ने दिया था। (Nagarajaiah Hampa: Santararu: 1997:134-36). Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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