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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 41 के शुभागमन के बाद, जिसने वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे, विनम्र गंगों ने समझौता किया और दोनों राजपरिवारों में मित्रता का संबंध स्थापित हुआ। तथापि 800 वर्षों तक गंगों ने सामंती राजा के रूप में शासन किया। विक्रमादित्य प्रथम की महारानी गंग महादेवी भूविक्रम की पुत्री थी। मुत्तरस (श्रीपुरूष वधराज) की महारानी विजय महादेवी विक्रमादित्य द्वितिय की पुत्री थी। इसके अलावा, जैसा कि पहले कहा गया है, विजयादित्य की महारनी दुर्विनीत की पुत्री थी। __गंग वंश जैनधर्म के कट्टर भक्त थे। उन्होंने जैन धर्म का अनुकरण किया। राजा शिवमार (सातवीं सदी) के ताम्र पत्र के पुरालेख में कोंगुनाड केल्लिपुसूर, आधुनिक केलसूरु गांव (चामराजनगर जिला, गुंडलपेट तालुका) को दिये गये दान का उल्लेख दर्ज है। सातवीं सदी का यह शिलालेख इस बात को दृढ करता है कि इस क्षेत्र में जैन मंदिरों का अस्तित्व छठी सदी के पूर्वार्ध से ही था। हाल ही में तलकाड में किए गए उत्खनन में विजय पार्श्वनाथ, तेइसवें तीर्थंकर को समर्पित, ईटों में बनाये / गए एक जैन प्रार्थनागृह की बुनियाद प्रकाश में आयी। मुशकरों की खातिर गंगों ने जिनालय बनवाया. जिसे मुशकर बस्ती कहा जाता था। तथापि पूर्वी गंगों के द्वारा सौंपे गए जैन मंदिर बादामी के अधिपत्य के प्रदेश को सिकुडे हुए हैं। केल्लुपसूर में स्थित एक प्राचीन जिनालय के अलावा अब और कोई विद्यमान नहीं 4. ए) सांतर वंश - कर्नाटक प्रदेश के शिमोगा जिले में स्थित पट्टि पोमबुच्चुपुर अर्थात आधुनिक होम्बुज आज एक हजार की आबादी का एक छोटा सा गांव है जो कि प्राचीन काल में राजधानी का विशाल शहर था। प्रारंभ में यह शहर वातापी के राजशासन के सामंत आळुपाओं के प्रभाव में समृद्ध हुआ। विद्यमान प्राचीन प्रार्थना मंदिर भव्यभवन, स्मारक, तालाब, जलाशय तथा अन्य अनेक प्राचीन पूजनीय अवशेष आदि उसकी प्रतिष्ठा, भव्यता और महत्व का ही प्रमाण देते हैं। होम्बुज- हुमचा, पूर्वी सांतरों का जंगल से आच्छादित राजधानी का यह शहर आम धर्मनिष्ठों, ज्ञानी इतिहासकारों तथा विद्वानों के लिए लगभग सहस्त्र वर्षों ले एक महत्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र का स्थान है और पुरे वर्ष भर यहाँ लोंग आते जाते रहते। छठी सदी के प्रारंभ से ही यहाँ पर लोगों का वास था और फिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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