________________ 40 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य संभाल ली थी। अतः गंगों को मात्र दूसरी पारी खेलनी थी हालाँकि सामंत के रूप में वे उपेक्षित नहीं थे। चालक्यों ने बड़ी होशियारी से गंगों से राजनीतिक सहायता प्राप्त की थी। अपनी राजनीतिक सुरक्षा तथा स्थिरता के लिए उन्होंने गंगों से बराबरी का व्यवहार किया था और दोनों शाही परिवारों में सौहार्द बनाये रखा और छठी सदी के पूर्वार्ध से ही दोनों परिवारों में वैवाहिक संबंध स्थापित किये। गंग चालुक्यों के अति महत्वपूर्ण स्नेह संबंधी सिद्ध हुए। ___ गंगों के प्रधान शासक दुर्विनीत ने पल्लवों तथा राष्ट्रकूटों का दमन किया जिन्होंने चालुक्यों के अधिपत्य तथा बल को रोकने का समन्वित प्रयास किया था। विशेषरूप से गंग राजा ने चालुक्यों को पल्लवराजा काडुवेट्टि की भर्त्सना से बचाया था। दुर्विनीत ने प्रसन्नता से अपने पुत्री तथा विजयादित्य के पुत्र जयसिंह वल्लभ को सिंहासनाधिष्ठ किया था। दुर्विनीत जो कि साहित्यकारों तथा साहित्य का आश्रयदाता और एक वीर योद्धा था, उसने आलत्तुर, अंधेरी तथा पुरुळरो में पल्लवों को परास्त किया था। (Nagarajaih. Hampa: History of Early Ganga Monarchy and Jainism: 1999). चालुक्यों की सत्ता शक्ति कुछ और काल तक न डूब जाए इसलिए गंग उनकी सहायता के लिए दौड़े चले आए। दुर्विनीत का पुत्र मुशकर तथा मुशकर का पुत्र श्रीविक्रम पुलकेशी तथा कीर्तिवर्म प्रथम के समकालीन शासक थे। श्रीविक्रम का पुत्र भूविक्रम पल्लवों के साथ युद्ध में व्यस्त था और पल्लव नरपति को विळंडे में पराजित कर रनहार हासिल किया। जब चालुक्य अपने दुर्भाग्य के फेरे से गुजर रहे थे। भूविक्रम उनकी सहायता के लिए दौड पडा। लगभग 150 वर्षों तक चालुक्यों के जहाज को डूबने से बचाना, गंगों का दृढ संकल्प था। तथापि, यह उल्लेखनीय है कि गंग और चालुक्य इन दो पडोसी शक्तियों के एक होने का कारण था, शक्तिशाली पल्लवों से बनी प्रादेशिक एकात्मकता को बचाए रखे। गंगों के सेनाबल तथा उनके सामाजिकसांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विचार कर चालुक्यों ने गंगों से कभी भी अन्य सामंतों की तरह व्यवहार नहीं किया था। आमतौर पर उनके साथ भिन्न स्तर पर दोनों सत्ताशक्तियों में मित्रता थी। इस मित्रता के संबंध के कारण गंग, चालुक्यों के निर्गमन के बाद बदलते राजनीतिक परिदृश्य में स्वयं की संगति नहीं बिठा पाये। आश्रित का पद स्वीकारने की अपेक्षा राष्ट्रकूटों की बढति शक्ति का कडाई से प्रतिकार किया। अमोघवर्ष प्रथम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org