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________________ 38 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य केल्लों के नाम तथा उनके योगदान का उल्लेख पाँचवीं शताब्दी से होने लगा। आश्चर्य की बात यह है कि वे स्वयं को कैकेयवंशी मानते हैं। एळ्ळकेल्ल उपनाम इलकेल्ल संभवतः उनके प्रतिष्ठापक का उल्लेख कैकेय राजा के रूप में कापोली (बेलगाँव जिला खानापूर तालूका) के भोज असंकितवर्म के शिलालेख में हुआ है। अभिलेख यह बताते हैं कि 70 सोल्लर में स्थित 70 उपभागों का एकगाँव जिसे कैकेय राजा इलकेल्ल ने दान में दिया था उसे भोज राजा असणकिर्तीवर्म के अधिकारी ने फिर एक बार उसका पुनःनवीकरण किया था। केल्लों का एक और प्रमुख मुरसकेल्ल इलकेल्ल का समकालीन था। (पांचवी शताब्दी) इसप्रकार पांचवीं सदी के अंत तक विद्यमान अभिलेख सरकेल्ल के अस्तित्व में होने की बात को स्पष्टरूप से स्थापित करते हैं जिसकी चर्चा ई.स. .450 के पुरालेख में हई है। महाकेल्ल तथा ईलकेल्ल परिवार लोकप्रिय थे और उनका संबंध कैकेय वंश से था। ___ लगता है कन्नड शब्द केल्ल की व्युत्पत्ति द्रविड शब्द केल' से हुई होगी जिसका अर्थ है पूर्ण करना। अतः व्युत्पत्तिपरक दृष्टि से केल्ल का अर्थ है सफल . या यशस्वी। वस्तुतः केल्ल शब्द का प्रयोग आमतौर पर विशेषण के रूप में प्रयोग में आता है, इस दृष्टि से भी यह व्युत्पत्ति सही लगती है। केल्लों का तमिलनाडु तथा कन्नडनाडु के कई भागों से केल्लों का संबंध बहुत गहरा तथा प्राचीन था। संभवतः पुत्तिगे उनका मूल निवास स्थान रहा होगा, जिस पर विचार करना आवश्यक है। संपुष्टि करने वाले साक्ष्य, पुरालेख तथा साहित्य आदि इस अनुमान को सिद्ध करते हैं। मार्नाडु (उडुपि जिला, कारकल तालूका) को अक्सर केल्ल पुत्तिगेल कहा जाता है, जो स्पष्टता इस बात का संकेत करता है कि यह उनके पुरखों का स्थान था। इस गाँव के नाम केल्ल पुत्तिगे इसलिए भी दिया गया क्योंकि जैन शासकों की उस सराहनीय परिवारों को विशेष पहचान मिली। दक्षिण कैनरा के ख्यातनाम लोकसाहित्यकार कलकुड पाडदन उनको केल्लत्त मार्नाडु अर्थात केल्लों के मार्नाडु कहते हैं। प्रांतों में जैनों के वैयक्तिक नाम केल्ल शब्द लगाकर चलते रहें। चालुलके, पंजलिके, वेणूर तथा कुळिपाडि आदि कारकल के आसपास के स्थान केल्लों के थे। हलमिडी के पुरालेख (425-30) के अनुसार, विजय अरसु, अरकेल्ला प्रथम का पुत्र तथा आळुपाओं की सेना का योद्धा था, जिसने कैकेय-पल्लवों के साथ घमासान युद्ध किया था। एक और अरकेल्ला द्वितिय जो उद्यावर प्रांत का प्रभारी था, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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