________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 37 का पवित्र स्थान था और यही केल्लों का पुश्तैनी घर था जहाँ से उनकी शाखाएँ दूर दूर स्थानों तक फैल गई। संभवतः सरकेल्ल भटरी और विज अरस जिसका हासन जिले के हलमडी शिलालेख में उल्लेख हुआ है तथा च्चारक्की मुरुस केल्लन और उसका पुत्र मात्रवर्मन प्राचीन जैन परिवार को चलाने वाले प्रथम संचालक थे। चित्रसेन महाकेल्ल (छठी सदी) के शासनकाल में केल्ल परिवार ने अपना महत्व तथा कुलीनता अर्जित की। (नागराजय्य हंप. 1997-बी: PP 470-74) गंग राजा राचमल्ल के काल में 9 वीं सदी में पांडवपुर तालुका मंध जिले में क्यातनहळ्ळी में उन्होंने एक जिनालय बनवाया और उसका नामकरण अपने परिवार के नाम केल्लबसदी पर किया अर्थात केल्लों का मंदिरा वे हासन के पास ही एक स्थान पर टिके रहे और फिर अपने परिवार के आधार पर ही उस स्थान को केल्लनगेरे नाम दिया जो कि मंच जिले के नागमंगल ग्राम में है, और शिलालेखों में इस शहर को आदितीर्थ कहा गया है, जो कि त्रिकुट जिनालय तथा अन्य मंदिरों के साथ उतने ही महत्व का तीर्थ स्थान है। - केल्ल केनरा जिले के उत्तरी तथा दक्षिण भाग में, हासन, तुमकूर, शिमोगा, मं / आदि जिलों में विभाजित हुए। उन्होंने पहले पूर्वी कदंबों के अधीन रहकर शासन प्रारंभ किया फिर उन्होंने चालुक्यों, राष्ट्रकूटों और फिर चालुक्यों की सेवा की। केल्लिपुसूरु, आधुनिक केलसूरु (चामराज जिला, तालूका गुंडलपेट) कोडगूरविषय का एक अन्य जैन केंद्र था। वहां का मंदिर सातवीं सदी में चंद्रप्रभ तीर्थंकर को समर्पित किया गया था। इस प्रकार जैनों के साथ केल्ली परिवार का संबंध शिलालेखिय साक्ष्य से प्रमाणित होता है। केल्लों के विशेष संदर्भ में इस बात पर सोच विचारना ठीक होगा कि चेल्लों और केल्लों का उद्गम एक समान ही था जिन्होंने राष्ट्रकूटों के शासनकाल में अपना महत्व प्रस्थापित किया था। व्युत्पत्ति की दृष्टि से चेल्ल और केल्ल एक ही शब्द के स्वनिम हो सकते हैं। भाषा विज्ञान की दृष्टि से द्रविड़ परिवार की भाषाओं में 'क' और 'च' परस्पर बदलते हैं। इस बात को चेल्लध्वज तथा केल्लध्वज शब्दों से समझा जा सकता है। (हंप. नागराजय्या : द्रविड़ भाषा विज्ञान :1994) तथापि उपर्युक्त विमर्श के पार्श्व में ऐतिहासिक तथ्य की बात यह है कि केल्ल परिवार के सदस्यों ने अपनी निष्ठा बनवासी कदंबों से छोडकर बादामी चालुक्यों के प्रति रखी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org